________________ 338] ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 67. प्रोहिनाणपज्जवेहि वि एवं चेव, नवरं विगलिदियाणं नस्थि प्रोहिनाणं / 67] अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी यही वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों में अवधिज्ञान नहीं होता। 68. मणपज्जवनाणं पि एवं चेव, नवरं जीवाणं मणुस्साण य, सेसाणं नस्थि / [68] मन:पर्थवज्ञान के पर्यायों के विषय में भी यही कथन करना चाहिए, किन्तु वह औधिक जीवों और मनुष्यों को ही होता है, शेष दण्डकों में नहीं पाया जाता। 69. जीवे णं भंते ! केबलनाणपज्जवेहि कि कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दायरजुम्मे, णो कलियोए। [69 प्र.] भगवन् ! (एक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / [66 उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म है, किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं है। 70. एवं मणुस्से वि। [70] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी जानना / 71. एवं सिद्धे वि। [71] सिद्ध के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। 72. जीवा णं भंते ! केवलनाण० पुच्छा। गोयमा ! अोघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर०, नो कलियोगा। [72 प्र.| भगवन् ! (अनेक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [72 उ.] गौतम ! अोघादेश से और विधानादेश से भी वे कृतयुग्म हैं, किन्तु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं हैं। 73. एवं मणुस्सा वि। [73] इसी प्रकार (अनेक) मनुष्यों के विषय में भी समझना चाहिए / 74. एवं सिद्धा वि। [74] इसी प्रकार सिद्धों के विषय में कहना चाहिए। 75. जोवे णं भंते ! मतिअन्नाणपज्जवेहि कि कडजुम्मे ? जहा प्राभिणिबोहियनाणपज्जवेहि तहेव दो दंडगा। [75 प्र.] भगवन् ! (एक) जीव मतिअज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / [75 उ.] आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों के समान यहाँ भी दो दण्डक कहने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org