________________ 328] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र षट् द्रव्य और उनमें द्रव्यार्थ तथा प्रदेशार्थ रूप से युग्मभेद निरूपण 8. कतिविधा णं भंते ! सम्वदव्या पन्नत्ता? गोयमा ! छठिवहा सन्धदव्वा पन्नता, तं जहा–धम्मत्थिकाये अधम्मस्थिकाये जाव अखासमये। [8 प्र.] भगवन् ! सर्व द्रव्य कितने प्रकार के कहे हैं ? [8 उ.] गौतम ! सर्व द्रव्य छह प्रकार के कहे हैं / यथा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय यावत् प्रद्धासमय (काल)। 6. धम्मस्थिकाये णं भंते ! दवट्टयाए कि कडजुम्मे जाव कलियोगे? गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, कलियोए। [6 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय क्या द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म यावत् कल्योज रूप है ? [6 उ.] गौतम ! धर्मास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म नहीं, व्योज भी नहीं है और द्वापरयुग्म भी नहीं है, किन्तु कल्योज रूप है / 10. एवं अधम्मत्थिकाये वि। [10] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के विषय में समझना चाहिए / 11. एवं प्रागासत्यिकाये वि / [11] आकाशास्तिकाय विषयक कथन भी इसी प्रकार है। 12. जीवस्थिकाए णं० पुच्छा। गोयमा ! कडजम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, नो कलियोए / {12 प्र.] भगवन् ! जीवास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न / [12 उ.] गौतम ! वह द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योज नहीं है। 13. पोग्गलत्थिकार्य णं भंते !0 पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मे, जाव सिय कलियोए। [13 प्र. भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / [13 उ.] गौतम ! वह द्रव्यार्थ रूप से कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज रूप है। 14. अद्धासमये जहा जीवत्थिकाये। [14] प्रद्धा-समय (काल) का कथन जीवास्तिकाय के समान है / 15. धम्मत्थिकाये णं भंते ! पएसट्ठताए कि कडजुम्मे० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, नो कलियोगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org