________________ 318 [भ्याख्यामाप्तसूत्र है। अलोकाकाश की श्रेणियों में चारों भंगों का सद्भाव बताया गया है। वह यो घटित हो सकता है-मध्यलोकवर्ती क्षुल्लकप्रतर के समीप आई हुई ऊर्ध्व-अधो लम्बी श्रेणियों की अपेक्षा प्रथम भंग--'सादि-सान्त' बनता है। लोकान्त से प्रारम्भ होकर चारों ओर जाती हुई श्रेणियों की अपेक्षा द्वितीय भंग-'सादि-अनन्त' बनता है। लोकान्त के निकट सभी श्रेणियों का अन्त होने से उनकी अपेक्षा तृतीय भंग---'अनादि-सान्त' घटित होता है। लोक को छोड़कर जो श्रेणियाँ हैं, उनकी अपेक्षा चतुर्थ भंग-'अनादि-अनन्त' घटित होता है / ' अलोक में तिरछी श्रेणियों का सादित्व होने पर भी सपर्यवसितत्व (सान्त) न होने से प्रथम भंग घटित नहीं होता, शेष तीन भंग घटित होते हैं। सामान्य श्रेणियों तथा लोक-अलोकाकाशश्रेणियों में द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से कृतयुग्मादि-प्ररूपणा 65. सेढीनो णं भंते ! दवट्टयाए कि कडजुम्मानो, तेसोयाओ० पुच्छा। गोयमा ! कडजुम्माओ, नो तेयोयाश्रो, नो दावरजुम्मानो, नो कलियोगायो। [65 प्र.] भगवन् ! अाकाश की श्रेणियाँ द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं, त्र्योज हैं, द्वापरयुग्म हैं अथवा कल्योज रूप हैं ? [95 उ.] गौतम ! वे कृतयुग्म हैं, किन्तु न तो योज हैं, न द्वापरयुग्म हैं और न ही कल्योज रूप हैं। 66. एवं जाव उड्डमहायताओ। [96] इसी प्रकार यावत् ऊर्ध्व और अधो लम्बी श्रेणियों तक के विषय में कहना चाहिए। 17. लोयागाससेढीओ एवं चेव / [97] लोकाकाश की श्रेणियाँ भी इसी प्रकार समझनी चाहिए / 68. एवं अलोयागाससेढीयो वि। [18] इसी प्रकार अलोकाकाश की श्रेणियों के विषय में भी जानना चाहिए। RE. सेढीनो णं भंते ! पएसट्टयाए कि कडजुम्माओ० ? एवं चेव / [66 प्र. भगवन् ! आकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थ रूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [66 उ.] पूर्ववत् जानना चाहिए। 100. एवं जाव उड्डमहायतायो। 6100 इसी प्रकार यावत् ऊध्र्व और अधो लम्बी श्रेणियों तक के विषय में कहना चाहिए / 101. लोयागाससेढीयो णं भंते ! पएसटुताए. पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मायो, नो तेयोयानो, सिय दावरजुम्मायो, नो कलिप्रोयानो। 1. भगवती अ. वृत्ति, पत्र 866 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org