________________ पच्चीसा शतक : उद्देशक 3] [319 [101 प्र.] भगवन् ! लोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थ रूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [101 उ.] गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्म हैं और कदाचित् द्वापरयुग्म हैं, किन्तु न तो योज हैं और न कल्योज रूप ही हैं। 102. एवं पावीणपडीणायताश्रो वि, दाहिणुत्तरायताओ वि / चम लम्बी तथा दक्षिण-उत्तर लम्बी लोकाकाशकी श्रेणियों के विषय में भी समझना चाहिए / 103. उड्डमहायताप्रो णं० पुच्छा / गोयमा ! कडजुम्मानो, नो तेयोगाओ, नो दावर जुम्मानो, नो कलियोगानो। [103 प्र.] भगवन् ! ऊर्ध्व और अधो लम्बी लोकाकाश की श्रेणियाँ कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [103 उ.] गौतम ! वे कृतयुग्म हैं, किन्तु न तो व्योज हैं, न द्वापरयुग्म हैं और न ही कल्योज रूप हैं। 104. अलोयागाससेढीयो णं भंते ! पदेसट्ठताए० पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्माश्रो जाय सिय कलियोयायो। [104 प्र.[ भगवन् ! अलोकाकाश की श्रेणियाँ प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पूर्ववत प्रश्न / [104 उ.] गौतम ! वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज रूप हैं / 105. एवं पाईणपडीणायतानो वि / [105] इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम लम्बी अलोकाकाश श्रेणियों के विषय में समझना चाहिए / 106. एवं दाहिणुत्तरायतानो वि / [106] दक्षिण-उत्तर लम्बी श्रेणियाँ भी इसी प्रकार हैं। 107. उड्डमहायतानो वि एवं चेव, नवरं नो कलियोयानो, सेसं तं चेव / [107] ऊर्ध्व और अधो लम्बी अलोकाकाश श्रेणियाँ भी इसी प्रकार हैं किन्तु वे कल्योज रूप नहीं हैं, शेष सब पूर्ववत् है। विवेचन श्रेणियों में कृतयुग्मादि प्ररूपणा-रुचक प्रदेशों से प्रारम्भ होकर जो पूर्व और दक्षिण गोलार्द्ध है, वह पश्चिम और उत्तर गोलार्द्ध के बराबर है। इसलिए पूर्व-पश्चिम श्रेणियाँ और दक्षिण-उत्तर श्रेणियाँ समसंख्यक प्रदेशों वाली हैं। उनमें से कोई कृतयुग्म प्रदेशों वाली हैं तथा कोई द्वापरयुग्म प्रदेशों वाली हैं, किन्तु त्र्योज और कल्योज प्रदेशों वाली नहीं हैं। इसके लिए प्रदेशों की असद्भाव-स्थापना बता कर इसी बात को स्पष्ट कर दिया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org