________________ 310 [व्याख्याप्रजप्तिसूत्र 152 प्र. भगवन् ! वृत्त-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है ? इत्यादि प्रश्न / [52 उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है, कदाचित योज-प्रदेशावगाद है और कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ है, किन्तु द्वापरयुग्म-प्रदेशादगाढ नहीं होता। 53. तसे गं भंते ! संठाणे० पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे, सिय तेयोगपदेसोगाढे, सिय दावरजुम्मपएसोगाढे, नो कलियोगपएसोगा। 53 प्र.] भगवन् ! त्र्यस्त्र-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है ? इत्यादि प्रश्न / | 53 उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयग्म-प्रदेशावगाढ, कदाचित् योज-प्रदेशावगाढ और कदाचित् द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ होता है, किन्तु कल्योज-प्रदेशावगाढ नहीं होता। 54. चउरंसे गं भंते ! संठाणे०, ? जहा बट्टे तहा चतुरंसे वि। {54 प्र.] भगवन् ! चतुरस्र-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है ? इत्यादि प्रश्न / |54 उ.] गौतम ! जिस प्रकार वृत्त-संस्थान के विषय में कहा है, उसी प्रकार चतुरस्त्र-संस्थान के विषय में भी जानना चाहिए। 55. आयते णं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे जाव सिय कलियोगपएसोगाढे / [55 प्र.] भगवन् ! आयत-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है ? इत्यादि प्रश्न / [55 उ.] गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ होता है और यावत् कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ होता है। 56. परिमंडला णं भंते ! संठाणा कि कडजुम्मपएसोगाढा, तेयोगपएसोगाढा पुच्छा। गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणावेसेण वि कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपदेसोगाढा / [56 प्र.] भगवन् ! (अनेक) परिमण्डल-संस्थान कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ होते हैं, त्र्योजप्रदेशावगाढ होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [56 उ. j गौतम! वे अोघादेश से तथा विधानादेश से भी कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ होते हैं, किन्तु न तो व्योज-प्रदेशावगाढ होते हैं, न द्वापरयुग्म-प्रदेशावगाढ और न कल्योज-प्रदेशावगाढ होते हैं / 57. बट्टा गं भंते ! संठाणा किं कडजुम्मपएसोगाढा० पुच्छा / / गोयमा ! ओधाएसेणं कडजुम्मपएसोगाढा, नो तेयोगपदेसोगाढा, नो दावरजुम्मपदेसोगाढा, नो कलियोगपएसोगाढा; विहाणादेसेणं कडजुम्मपदेसोगाढा वि तेयोगपएसोगाढा वि, नो दावरजुम्म. पएसोगाढा, कलियोगपएसोगाढा वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org