________________ 202] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र की होती है / मध्य के तीन गमकों का कथन संज्ञी-पंचेन्द्रिय के मध्य के तीनों गमकों के समान है। प्रथम के तीन सौधिक गमकों में जो अवगाहना और स्थिति कही गई है वह अन्तिम तीन गमकों में नहीं होती, किन्तु इनमें अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की और स्थिति तथा अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के हैं।' देवों से पाकर पृथ्वीकायिकों में उत्पाद-निरूपण 40. जति देवेहितो उववज्जति किं भवणवासिदेवेहितो उबवति, वाणमंतर०, जोतिसियदेवेहितो उवव०, वेमाणियदेवेहितो उववज्जति ? ___ गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति जाव वेमाणियदेवेहितो वि उववज्जति / 40 प्र. भगवन् ! यदि बे (पृथ्वीकायिक) देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से प्राकर उत्पन्न होते हैं ? 40 उ.] गौतम ! वे भवनवासी देवों से भी प्राकर उत्पन्न होते हैं, यावत् वैमानिक देवों से भी पाकर उत्पन्न होते हैं। विवेचन-निष्कर्ष-पृथ्वीकायिक जीवों में भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक, चारों निकायों के देव उत्पन्न हो सकते हैं / भवनवासी देवों की अपेक्षा पृथ्वीकायिकों में उत्पत्ति-निरूपण 41. जइ भवणवासिदेवेहितो उववन्जंति किं असुरकुमारभवणवासिदेवेहितो उधवज्जति जाव थणियकुमारभवणवासिदेवेहितो० ? गोयमा ! असुरकुमारभवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति जाव थाणियकुमारभवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति / [41 प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे असुरकुमार-भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् स्तनितकुमारभवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? {41 उ.] गौतम ! वे असुरकुमार-भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं, यावत् स्तनितकुमार-भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। विवेचन--निष्कर्ष-पृथ्वीकायिक जीव दसों प्रकार के भवनपति देवों से आकर उत्पन्न होते हैं / दस प्रकार के भवनपति देवों के नाम इस प्रकार हैं--(१) असुरकुमार, (2) नागकुमार, 1. (क) वियाह्पणत्तिसुत्तं, भाग 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. 938-139 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 832 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org