________________ 304] [व्यास्याप्रज्ञप्तिसून प्रतरचतुरस्र जघन्य चार प्रदेश वाला और चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय प्रदेशों में अवगाढ होता है / घन-चतुरस दो प्रकार का कहा है / यथा--प्रोज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक / श्रोज-प्रदेशिक घन-चतुरस्र जघन्य सत्ताईस प्रदेशों वाला और सत्ताईस आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है। युग्म-प्रदेशिक घन-चतुरस्र जघन्य पाठ प्रदेशों वाला और आठ आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है। 40. प्रायते णं भंते ! संठाणे कतिपएसिए कतिपदेसोगाढे पन्नते? गोयमा ! प्रायते णं संठाणे तिविधे पन्नत्ते, तं जहा-सेहिआयते, पयरायते, घणायते। तत्थ गंजे से सेढिआयते से दुविहे पन्नत्ते, तं जहा--प्रोयपदेसिए म जुम्मपएसिए य / तत्थ णं जे से ओयपएसिए से जहन्नेणं तिपएसिए, तिपएसोगाढे उक्कोसेणं अणंतपएसिए, तं चेव / तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं दुपएसिए दुपएसोगाढे उक्कोसेणं अणंत० तहेव / तत्थ णं जे से पयरायते से बुबिहे पन्नत्ते, तं जहा–प्रोयपएसिए य, जुम्मपएसिए य / तत्थ गंजे से प्रोयपएसिए से जहन्नेणं पन्नरसपएसिए, पन्नरसपएसोगा; उक्कोसेणं अणंत० तहेव / तत्थ गं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं छप्पएसिए, छप्पएसोगाढे, उक्कोसेणं अणंत० तहेव। तत्थ णं जे से घणायते से दुविधे पन्नते, तं जहा-प्रोयपएसिए य, जुम्मपएसिए य / तत्थ णं जे से प्रोयपएसिए से जहन्नेणं पणयालीसपदेसिए पणयालीसपदेसोगाढे पन्नत्ते, उक्कोसणं अत० तहेव / तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहन्नेणं वारसपएसिए बारसपएसोगाढे, उक्कोसेणं प्रणंत तहेव / [40 प्र.] भगवन् ! प्रायतसंस्थान कितने प्रदेश वाला और कितने प्रकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है ? [40 उ.] गौतम ! अायतसंस्थान तीन प्रकार का कहा है। यथा--श्रेणीपायत, प्रतरायत और घनायत / श्रेणीमायत दो प्रकार का कहा है। यथा-~-प्रोज-प्रदेशिक और युग्म-प्रदेशिक / उनमें से जो प्रोज-प्रदेशिक है, वह जघन्य तीन प्रदेशों वाला और तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है। जो युग्म-प्रदेशिक है, वह जघन्य दो प्रदेश वाला और दो आकाशप्रदेशों में अव गाढ होता है, तथा उत्कृष्ट अनन्तप्रदेशिक और असंख्यात-प्रदेशावगाढ होता है। उनमें से जो प्रतरायत होता है, वह दो कार का कहा है। यथा-प्रोज-प्रदेशिक और यग्म-प्रदेशिक / जो प्रोज-प्रदेशिक है, वह जघन्य पन्द्रह आकाश-प्रदेशों में अवगाढ होता है। तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय प्राकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है / जो युग्म-प्रदेशिक है, वह जघन्य छह प्रदेश वाला और छह आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है, तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाश-प्रदेशों में अवगाढ होता है / उनमें से जो घनायत है, वह दो प्रकार का कहा है / यथा-ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक / जो प्रोजप्रदेशिक है, वह जघन्य पैंतालीस प्रदेशों वाला और पैंतालीस आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है, तथा उत्कृष्ट अनन्त-प्रदेशिक और असंख्येय आकाशप्रदेशों में अवमाढ होता है / जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org