________________ 296] [াম লিৰ [5] इसी प्रकार प्रदेशार्थरूप से भी जानना चाहिए तथा द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से भी / विवेचन–निष्कर्ष-सभी प्रकार के संस्थान द्रव्यार्थ प्रदेशार्थ तथा द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ (उभय) रूप से अनन्त हैं। छह संस्थानों का द्रव्यार्थादि रूप से अल्पबहुत्व 6. एएसि णं भंते! परिमंडल-वट्ट-तंस-चतुरंस-आयत-प्रणित्थंथाणं संठाणाणं दवट्ठयाए पएसट्ठताए दव्वट्ठ-पदेसट्टयाए कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सम्वत्थोवा परिमंडला संठाणा दबट्टयाए, बट्टा संठाणा दम्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, चउरसा संठाणा दग्वटुयाए संखेज्जगुणा, तंसा संठाणा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, आयता संठाणा दव्वट्ठयाए संखेज्जगुणा, अणित्थंथा संठाणा दवट्टयाए असंखेज्जगुणा। पएसट्ठताए-सव्वत्थोवा परिमंडला संठाणा पएसट्टयाए, वट्टा संठाणा पएसट्टयाए संखेज्जगुणा, जहा दम्वट्ठयाए तहा पएसट्टताए वि जाव अणित्थंथा संठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा।। ___ दवट्ठपएसट्टयाएसम्वत्थोवा परिमंडला संठाणा दग्वट्ठयाए, सो चेव दन्वटुतागमओ भाणियब्वो जाव अणित्थंथा संठाणा दब्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा। अणित्थंथेहितो संठाणेहितो दव्वट्टयाए, परिमंडला संठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा; बट्टा संठाणा पएसट्टयाए संखेज्जगुणा, सो चेव पएसट्टयाए गमओ भाणियन्वो जाव अगित्थंथा संठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा। [6 प्र.] भगवन् ! इन परिमण्डल, वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र आयत और अनित्यंस्थ संस्थानों में द्रव्यार्थरूप से, प्रदेशार्थरूप से और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से कौन संस्थान किन संस्थानों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? [6 उ.] गौतम ! (1) द्रव्यार्थरूप से परिमण्डल-संस्थान सबसे अल्प हैं, (2) उनसे वृत्तसंस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, (3) उनसे चतुरस्त्र-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, (4) उनसे त्र्यस्त्र-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, (5) उनसे आयत-संस्थान द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणा हैं और (6) उनसे अनित्थंस्थ-संस्थान द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं। प्रदेशार्थरूप से—(१) परिमण्डल-संस्थान प्रदेशार्थरूप से सबसे अल्प हैं, (2) उनसे वृत्तसंस्थान प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणा हैं, इत्यादि / जिस प्रकार द्रव्यार्थरूप से कहा गया है, उसी प्रकार प्रदेशार्थरूप से भी यावत्-'अनित्थंस्थ-संस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से परिमण्डल-संस्थान द्रव्यार्थरूप से सबसे अल्प हैं, इत्यादि जो पाठ द्रव्यार्थ सम्बन्धी हैं, वहीं यहाँ द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप से जानना चाहिए; यावत्-अनित्थंस्थ-संस्थान द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं। द्रव्यार्थरूप अनित्थंस्थ-संस्थानों से, प्रदेशार्थरूप से परिमण्डलसंस्थान असंख्यातगुणा हैं; उनसे वृत्त-संस्थान प्रदेशार्थरूप से संख्यातगुणा हैं; इत्यादि, पूर्वोक्त प्रदेशार्थरूप का गमक, यावत् अनित्थंस्थ-संस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं; यहाँ तक कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org