________________ पंचवीसइम सयं पच्चीसवां शतक पच्चीसवें शतक के उद्देशकों का नाम निरूपण 1. लेसा य 1 दव्व 2 संठाण 3 जुम्म 4 पज्जव 5 नियंठ 6 समणा य 7 / पोहे 8 भवियाऽभविए 6-10 सम्मा 11 मिच्छे य 12 उद्देसा // 1 // [1 गाथार्थ] पच्चीसवें शतक के ये बारह उद्देशक हैं--(१) लेश्या, (2) द्रव्य, (3) संस्थान, (4) युग्म, (5) पर्यव, (6) निर्गन्थ, (7) श्रमण, (8) अोष, (6) भव्य, (10) अभव्य, (11) सम्यग्दृष्टि और (12) मिथ्यादृष्टि / विवेचन---उद्देशकों का विशेषार्थ-पच्चीसवें शतक में बारह उद्देशक हैं, जिनके विशेषार्थ इस प्रकार हैं-(१) लेश्या-लेश्या आदि के सम्बन्ध में प्रथम उद्देशक है। (2) द्रव्य-जीवद्रव्य, अजीवद्रव्य से सम्बन्धित द्वितीय उद्देशक है। (3) संस्थान--परिमण्डल, वृत्त प्रादि छह संस्थानों के विषय में तृतीय उद्देशक है / (4) युग्म-कृतयुग्म आदि चार युग्मों (राशियों) के विषय में चतुर्थ उद्देशक है / (5) पर्यव-जीव-अजीव-पर्यव आदि से सम्बद्ध विवेचन वाला पंचम उद्देशक है / (6) निर्ग्रन्थ-पुलाकादि पांच प्रकार के निर्ग्रन्थों का 36 द्वारों के माध्यम से विवेचनयुक्त छठा उद्देशक हैं। (7) श्रमण-सामायिक आदि पांच प्रकार के संयतों का विविध पहलुगों से विवरणयुक्त सप्तम उद्देशक है। (8) अोघ-सामान्य नारकादि जीवों की उत्पत्ति से सम्बन्धित आठवा उद्देशक है। (8) भव्य-चातुर्गतिक भव्य जीवों की उत्पत्ति आदि से सम्बद्ध नौवाँ उद्देशक है / (10) अभव्य--अभव्य जीवों की उत्पत्ति-सम्बन्धी दसवाँ उद्देशक है। (11) सम्यग्दष्टि-चातुर्गतिक सम्यग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति से सम्बन्धित 11 वाँ उद्देशक है और (12) मिथ्यादृष्टि-चातुर्गतिक मिथ्यादृष्टि जीवों की उत्पत्ति सम्बन्धी चारहवाँ उद्देशक है। इस प्रकार पच्चीसवें शतक में बारह उद्देशकों की वक्तव्यता है।' DO 1. (क) वियाहपणत्तिसुत्तं भा. 2 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 969 (ख) श्रीमद्भगवतीसूत्र, पंचम अंग, चतुर्थ खण्ड (गुजराती अनुवाद), पृ. 185 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org