________________ 236] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [36 उ.] गौतम ! वे संज्ञी और असंज्ञी-दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। विवेचन-निष्कर्ष- संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च, संज्ञी और असंज्ञी- दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। पंचेन्द्रियतिथंचों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्यों में उत्पादादि बीस द्वारों की प्ररूपरणा 40. असन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पंचेंदियतिरिक्ख० उवव० से णं भंते ! केवतिकाल.? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुत्वकोडिआउएसु उववज्जति / लद्धी से तिसु वि गमएसु जहेव पुढविकाइएसु उववज्जमाणस्स, संवेहो जहा एस्थ चेव असन्निस्स पंचेंदियस्स मन्भिमेसु तिसु गमएसु तहेव निरवसेसो भाणियध्वो / [40 प्र.] भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, जो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले सं. पं. तिर्यञ्च में उत्पन्न होता है ? / 40 उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले सं. पं. तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। पृथ्वी कायिकों में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी मनुष्य की प्रथम के तीन गमकों में जो वक्तव्यता कही है, उसके अनुसार यहाँ भी प्रथम के तीन गमकों में कहनी चाहिए। जिस प्रकार असंज्ञीपंचेन्द्रिय के मध्यम तीन गमकों में संवेध कहा है, उसी प्रकार सब कहना चाहिए। विवेचन-असंज्ञी मनुष्यों में आद्य तीन ही गमक-असंज्ञी मनुष्य के विषय में नौ गमकों में से प्रथम के तीन गमक ही सम्भव हैं, क्योंकि असंज्ञी मनुष्य की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की ही होने से ये तीन ही गम हो सकते हैं, शेष छह गम नहीं होते।' पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में उत्पन्न होने वाले संजो मनुष्य के उत्पाद-परिमाण प्रादि द्वार 41. जइ सणिमणुस्स० कि संखेज्जवासाउयसणिमणुस्स०, असंखेज्जवासाउयसरिणमणुस्स०? गोयमा ! संखेज्जवासाउय०, नो असंखेज्जवासाउय० / [41 प्र.] भगवन् ! यदि वह (सं. पं. तिर्यञ्च) संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है तो, क्या वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञो मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञो मनुष्यों से ? 41 उ.] गौतम ! वह संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है, असंख्यात वर्ष की आयु वाले सं. म. से नहीं / 42. जदि संखेज्ज० किं पज्जत्ता०, अपज्जत्ता० ? गोयमा ! पज्जत्त०, अपज्जत्त० / [42 प्र.] भगवन् ! यदि वह (सं. पं. तिर्यञ्च) संख्यात-वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 841 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org