________________ 270 } व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र |19| इसी प्रकार ब्रह्मलोकदवों की भी वक्तव्यता जाननी चाहिए। किन्तु ब्रह्मलोकदेव की स्थिति और संवेध (भित्र) जानना चाहिए / इसी प्रकार यावत् सहस्रारदेव तक पूर्ववत् वक्तव्यता जाननी चाहिए / किन्तु स्थिति और संवेध अपना-अपना जानना चाहिए। 20. लंतगाईणं जहन्नकालद्वितीयस्स तिरिक्खमोणियस्स तिसु वि गमएसु छप्पि लेस्साम्रो कायवाओ। संघयणाई बंभलोग-लंतएसु पंच प्रादिल्लगाणि, महासुक्क-सहस्सारेसु चत्तारि, तिरिक्खजोणियाण वि मणुस्साण नि / सेसं तं चेव / 20] लान्तक आदि (लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार) देवों में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति वाले सं. पं. तिर्यञ्चयोनिक के तीनों ही गमकों में छहों लेश्याएँ कहनी चाहिए / ब्रह्मलोक और लान्तक देवों में प्रथम के पांच संहनन, महाशुक्र और सहस्रार में आदि के चार संहनन तथा लियञ्चयोनिकों तथा मनुष्यों में भी यही जानना चाहिए / शेष पूर्ववत् / विवेचन-लेश्या-संहननादि के विषय में स्पष्टीकरण-(१) सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में प्रथम की पांच लेश्याएँ कही हैं। क्योंकि सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न होने वाला जघन्य स्थिति का तिर्यञ्च अपनी जघन्य स्थिति के कारण कृष्णादि चार लेश्यानों में से किसी एक लेश्या में परिणत होकर मरण के समय में पद्मलेश्या को प्राप्त कर मरता है, तब उस देवलोक में उत्पन्न होता है, क्योंकि अगले भव की लेश्या में परिणत हो कर ही जीव परभव में जाता है, ऐसा सैद्धान्तिक नियम है / अतः इसके पांच लेश्याएं होती हैं / इसी प्रकार माहेन्द्र एवं ब्रह्मलोक के विषय में भी समझना चाहिए। (2) देवलोक में उत्पन्न होने वाले के संहननों के विषय में यह नियम है छेवट्टेण उ गम्मइ चत्तारि उ जाव अाइमा कप्पा / बढेज कप्पजुयलं संघयणे कीलियाईए।। अर्थात्--प्रथम के चार देवलोकों में छह संहनन वाला जाता है। पांचवें और छठे में पांच संहनन वाला, सातवें आठवें में चार संहनन वाला; नौवें, दसवें, ग्यारहवें और बारहवें में तीन संहनन वाला, नौ बेयक में दो संहनन वाला और पांच अनुत्तर विमान में एक संहनन वाला जाता है।' प्रानत से सर्वार्थसिद्ध तक के देवों में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपरणा 21. प्राणयदेवा णं भंते ! कओहितो उववज्जति ?. उबवानो जहा सहस्सारदेवाणं, णवरं तिरिक्खजोणिया खोडेयव्या जाव--- | 21 प्र.) भगवन् ! प्रानतदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 851 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 6, पृ. 3190 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org