________________ 272] ष्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अग्भहियाई; एवतियं० / एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियम्वा, नवरं ठिति संवेहं च जाणेज्जा / मणूसलद्धी नवसु वि गमएसु जहा गेवेज्जेसु उववज्जमाणस्स, नवरं पढमसंघयणं / [25 प्र. भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [25 उ.] पूर्वोक्त सारी वक्तव्यता यावत् अनुबन्ध तक जानता / विशेष—इनमें प्रथम संहनन वाले उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् / भवादेश से-जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव तथा कालादेश से-जघन्य दो वर्ष पृथक्त्व-अधिक 31 सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक 66 सागरोपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। शेष आठ गमक भी इसी प्रकार कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनमें स्थिति और संवेध (अपना-अपना भिन्न-भिन्न) जान लेना चाहिए। मनुष्य के नौ ही गमकों में (उत्पत्ति आदि), गवेयेक में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के गमकों के समान कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि विजय आदि (चारों वैमानिक देवों) में प्रथम संहनन वाला ही उत्पन्न होता है। 26. सम्वदृसिद्धगदेवा णं भंते ! कत्रो० उववज्जति ? उववालो जहेब विजयाईणं जाव|२६ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देव कहाँ से आकर उत्पन्न होता है ? :26 उ.) इसका उपपात (उत्पत्ति) आदि विजय आदि के समान है / यावत्२७. से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहन्नेणं तेत्तीससागरोवमदिति० उक्कोसेण वि तेत्तीससागरोवमट्टितीएसु उवव० / अवसेसा जहा विजयादिसु उववज्जंताणं, नवरं भवाएसेणं तिन्नि भवगहणाई; कालाएसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाई दोहि वासपुहत्तेहि अमहियाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहि पुत्वकोडोहि अमहियाई; एवतियं० / [पढमो गमयो] / [.27 प्र.] भगवन् ! वे (संज्ञी मनुष्य) कितने काल की स्थिति वाले सर्वार्थसिद्धदेवों में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / / 27 उ.] गौतम ! वे जघन्य और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले सर्वार्थ सिद्धदेवों में उत्पन्न होते हैं। शेष वक्तव्यता विजयादि देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य के समान है। विशेषता यह है कि भवादेश से-तीन भवों का ग्रहण होता है, कालादेश से-जघन्य दो वर्षपृथक्त्व-अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [प्रथम गमक) 28. सो चेव अप्पणा जहन्नकाल द्वितीयो जाओ, एस चेव वत्तव्वया, नवरं ओगाहणा-ठितीनो रयणिपुहत्त-वासपुहत्ताणि / सेसं तहेव / संवेहं च जाणेज्जा। [बीनो गमो] / [28] यदि वह (संज्ञी मनुष्य) स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और सर्वार्थसिद्धदेवों में उत्पन्न हो, तो भी यही पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिए / विशेषता यह है कि इसकी अवगाहना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org