________________ 234] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति / ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं / सेसं तं चेव जाव अणुबंधो ति। भवादेसेणं दो भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहन्नेणं तिण्णि पलिओषमाई अंतोमुत्तमम्भहियाई, उक्कोसेणं तिणि पलिनोवमाइं पुवकोडीए अमहियाई / [सइमो गमो ] / [34] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सं. पं. तिथंचों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले संज्ञी पं. तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्वोक्त वक्तव्यतानुसार कहना चाहिए। परन्तु परिमाण में विशेष यह है कि वह जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं / (उसके शरीर की) अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातथे भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की होती है। शेष पूर्ववत् यावत् मनुबन्ध तक जानना / भवादेश से--दो भव और कालादेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-अधिक तीन पल्योपम, इतने काल तक यावत गमनागमन करता है। [तृतीय गमक] 35. सो चेव अप्पणा जहन्नकाल द्वितीयो जाओ, जहन्नेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडियाउएसु उवव० / लद्धी से जहा एयस्स चेव सन्निपंचेंदियस्स पुढविकाइएस उववज्जमाणस्स मभिल्लएस तिसु गमएस सच्चेव इह वि मज्झिमएस तिसु गमएसु कायव्वा / संवेहो जहेव एत्थ चैव असन्निस्स मज्झिमएसु तिसु गमएसु / [4-6 गमगा] / [35] यदि वह (संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च), स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और (संज्ञी पं. तिर्यञ्चों में) उत्पन्न हो, तो वह जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि-वर्ष की स्थितिवाले सं. पंचे. तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होता है। इस विषय में पृथ्वी कायिकों में उत्पन्न होने वाले इसी सज्ञी पंचेन्द्रिय की वक्तव्यता के अनुसार मध्य के तीन (4-5-6) गमक जानने चाहिए तथा पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च में उत्पन्न होने वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय के बीच के तीन गमकों (4-5-6) में जो संवेध कहा है, तदनुसार यहाँ भी कहना चाहिए / [गमक 4-5-6] 36. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीओ जामो, जहा पढमगमओ, गवरं ठिती अणुबंथो जहन्नेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी। कालाएसेणं जहन्नेणं पुरुषकोडी अंतोमुत्तमम्भहिया, उक्कोसेणं तिन्नि पलिमोबमाई पुनकोडिपुत्तमम्भहियाइं। [सत्तमो गमो] / [36] यदि वह (संज्ञी पं. तिर्यञ्च) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो उसके विषय में प्रथम गमक के समान कहना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि स्थिति और अनबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष कहना चाहिए। कालादेश से-जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / [सप्तम गमक] 37. सो चेव जहन्नकाल द्वितीएसु उववण्णो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालाएसेणं जहन्नेणं पुवकोडी अंतोमुत्तमन्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुध्धकोडीनो चहि अंतोमुत्तेहि अमहियाश्रो, [अटुमो गमओ] / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org