________________ 200] [व्याख्याप्राप्तिसूत्र [34 प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे (पृथ्वी कायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञो मनुष्यों से ? [34 उ.] गौतम ! वे संज्ञी और असंज्ञी दोनों प्रकार के मनुष्यों से पाकर उत्पन्न होते हैं। 35. असग्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएस० से णं भंते ! केवतिकाल.? एवं जहा असन्निपंचेदियतिरिक्खस्स जहन्नकाल द्वितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एतरस वि प्रोहिया तिनि गमगा भाणियध्वा तहेव निरवसेसं / सेसा छ न भण्णंति / [1-3 गमगा] / [34 प्र.] भगवन् ! यदि असंज्ञी मनुष्य, जो पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने योग्य है, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? [35 उ.] जिस प्रकार जघन्य काल की स्थिति वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक के विषय में तीन गमक कहे गए हैं, उसी प्रकार यहाँ भी औधिक तीन गमक सम्पूर्ण कहने चाहिए। शेष गमक नहीं कहने चाहिए। [गमक 1 से 3 तक 36. जइ सन्निमणुस्से हितो उववज्जति कि संखेज्जवासाउय०, असंखेज्जवासाउय० ? गोयमा! संखेज्जवासाउय०, णो असंखेज्जवासाउय० / [36 प्र.] यदि वे (पृथ्वीकायिक) संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले संजी मनुष्यों से ? [36 उ.] गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, प्रसंख्यात वर्ष की प्रायु वाले संज्ञी मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते। 37. जदि संखेज्जवासाउय० कि पज्जत्त०, अपज्जत्त० ? गोयमा ! पज्जत्तसंखे०, अपज्जत्तसंखेज्जवासा / | 37 प्र. भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से ? 37 उ.] गौतम ! वे पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों प्रकार के संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से प्राकर उत्पन्न होते हैं। 38. सन्निमणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उवव०, से णं भंते ! केवितकाल० ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त०, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सद्वितीएसु। . [38 प्र.] भगवन् ! संख्येयवर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी मनुष्य जो पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? [38 उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org