________________ चोवीसका शतक : उद्देशक ] [179 नागकुमार में उत्पन्न होनेवाले असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में उपपात-परिमारणादि बीस द्वारों की प्ररूपया 13. जइ मणुस्सेहितो उववज्जंति कि सनिमणु०, प्रसिण्णमणु० ? गोयमा ! सनिमणु०, नो असन्निमणु० जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जाव-- [13 प्र.] भगवन् ! यदि वे (नागकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो वे संजी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, या असंज्ञी मनुष्यों से ? [13 उ.] गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी मनुष्यों से नहीं इत्यादि जैसे असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य मनुष्यों की वक्तव्यता कही है, वैसे ही यहाँ कहनी चाहिए / यावत् 14. असंखेज्जवासाउयसनिमगुस्से णं भंते ! जे भविए नागकुमारेसु उववज्जित्तए से गं भंते ! केवतिकाल द्वितीएसु उववज्जइ? गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्स०, उक्कोसेणं देसूणदुपलिनोवमः / एवं जहेव असंखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं नागकुमारेसु श्रादिल्ला तिम्णि गमका तहेव इमस्स वि, नवरं पढमबितिएसु गमएसु सरीरोगाहणा जहन्नेणं सातिरेगाई पंच धणुसयाई, उक्कोसेणं तिनि गाउयाई, ततियगमे ओगाहणा जहन्नेणं देसूणाई दो गाउयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। सेसं तं चेव / [1-3 गमगा। [14 प्र.] भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, जो नागकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है ? / [14 उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वाले गकुमारों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार असंख्यात वर्ष की आय वाले तिर्यञ्चों का नागकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी प्रथम के तीन गमक जानने चाहिए। परन्तु पहले और दूसरे गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य सातिरेक पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है। तीसरे गमक में अवगाहना जघन्य देशोन दो गाऊ और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। शेष सब पूर्ववत् / [गमक 1-2-3] 15. सो चेव अप्पणा जहनकालद्वितीयो जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स तहेब निरवसेसं / [4-6 गमगा] / [15] यदि वह स्वयं (नागकुमार), जघन्य काल की स्थिति वाला हो, तो उसके भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य असंख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संजी मनुष्य के समान समग्र वक्तव्यता कहनी चाहिए / [गमक 4-5-6] 16. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीयो जानो तस्स तिसु वि गमएसु जहा तस्स चेव उक्कोसकाल द्वितीयस्स असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स, नवरं नागकुमारद्धिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव / [7-6 गमगा] / [16] यदि वह (नागकुमार) स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो उसके सम्बन्ध में भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असंख्यातवर्षीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org