________________ [ब्याख्याप्रमाप्तिसून संशी मनुष्य के समान वक्तव्यता जाननी चाहिए / परन्तु विशेष मह है कि यहाँ नागकुमारों की स्थिति और संवेध जानना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जानना / [गमक 7-8-9] नागकुमार में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी-मनुष्य में उपपात प्रावि प्ररूपणा 17. जदि संखेज्जवासाउयसनिमणु० किं पज्जत्तासंखेज्ज०, अपज्जत्तासं० ? पोयमा ! पज्जत्तासंखे०, नो अपज्जत्तासंखे० / [17 प्र.] भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं तो पर्याप्त मा अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं ? [17 उ.] गौतम ! वे पर्याप्त संख्यात वर्ष की भायु वाले संज्ञी मनुष्यों से माले हैं, पपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से नहीं। 18. पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसनिमणुस्से गं भंते ! जे भयिए नागकुमारेसु उववज्जित्तए से गं भंते ! केवति? पोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्त०, उक्कोसेणं देसूणदोपलिओवमट्टिती० / एवं जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स स च्चेव लखी निरवसेसा नवसु गमएसु, नवरं नागकुमारदिति संघेहं। भाणेज्जा / [1-6 गमगा] / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / ॥पउवोसतिमे सए : ततिओ उद्देसगो समसो // 24-3 // [18 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य नागकुमारों में उत्पन्न हो तो कितनी काल की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ? [18 उ.] गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति के नागकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले मनुष्य की वक्तव्यता के समान किन्तु स्थिति और संवेध नागकुमारों के समान जानना चाहिए। [१-६-गमक] 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतम स्वामी, यावत् विचरण करते हैं। विवेचन--निष्कर्ष--(१) नागकुमार पर्याप्त संख्यात अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं। (2) वे जघन्य 10 हजार वर्ष और उत्कृष्ट कुछ न्यून दो पल्योपम की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न होते हैं। (3) नागकुमारों में उत्पन्न होने सम्बन्धी नौ ही गमकों की वक्तव्यता प्रायः असुरकुमारों के समान है / जहाँ-जहाँ कुछ अन्तर है, वहाँ मूलपाठ में ही वह बता दिया गया है।' ॥चौवीसवां शतक : तृतीय उद्देशक सम्पूर्ण / 1. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भाग 2, (मूलपाठ-टिप्पण्युक्त) पृ. 128-929 (ख) भगवती० (हिन्दी विवेचन) भाग 6, पृ. 3061 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org