________________ बारसमो : पुढविकाइय उद्देसओ बारहवाँ उद्देशक : पृथ्वीकायिक (उपपातादि प्ररूपणा) गति की अपेक्षा से पृथ्वीकायिकों की उत्पत्तिप्ररूपणा 1. [1] पुढविकाइया गं भंते ! कमोहिओ उववज्जति? किं नेरइएहितो उववज्जंति, तिरिक्ख-मणुस्स-देवेहितो उववज्जति ? गोयमा! नो नेरइएहितो उववज्जति, तिरिक्ख-मणुस्स-देवेहितो उववज्जति / [1-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से पाकर उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं ? [1-1 उ.] गौतम ! वे नैरयिकों से नहीं, किन्तु तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से उत्पन्न होते हैं / [2] जदि तिरिक्खजोणि किं एगिदियतिरिक्खजोणि०, ? एवं जहा वक्कंतीए उववातो जाव [1-2 प्र.] यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या एकेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [1-2 उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के (छठे) व्युत्क्रान्ति पद में कहा गया है, तदनुसार यहाँ भी उपपात कहना चाहिए / यावत् [3] जदि बादरपुढविकाइयएगिदियतिरिक्खजोगिएहितो उववज्जति किं पज्जत्ताबायर० जाव उववज्जंति, अपज्जत्ताबादरपुढवि० ? गोयमा ! पज्जत्ताबायरपुढवि०, अपज्जत्ताबादरपुढवि जाव उववज्जति / 12-3 प्र.] भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव) बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक से? [1-3 उ.] गौतम ! वे पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों प्रकार के बादर पृथ्वीकायिक जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए।) विवेचन-दो निष्कर्ष-(१) पृथ्वीकायिक जीव नारकों से नहीं पाते, वे तिर्यञ्चों, मनुष्यों या देवों से आकर उत्पन्न होते हैं / (2) तिर्यञ्चयोनिकों में भी वे पर्याप्त और अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं।' 1. वियाहपण्यत्तिसुत्तं भा.२, (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 930 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org