________________ तइओ नागकुमारुद्देसओ तृतीय उद्देशक : नागकुमार-(उत्पादादि-प्ररूपणा) गति को अपेक्षा से नागकुमारों की उत्पत्ति का निरूपण 1. रायगिहे जाब एवं क्यासि-- [1] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा 2. नागकुमारा णं भंते ! कमोहितो उववज्जति ? किं नेरइएहितो उववज्जति, तिरि-मणुदेवेहितो उववजंति ? गोयमा ! नो रइएहितो उववति, तिरिक्खजोणिय-मगुस्सेहितो उववज्जति, नो देवहितो उववज्जति। [2 प्र.] भगवन् ! नागकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नरयिकों से प्राकर उत्पन्न होते हैं, अथवा तिर्यञ्चयोनिकों से, मनुष्यों से या देवों से पाकर उत्पन्न होते हैं ? [2 उ.] गौतम ! वे न तो नैरयिकों से और न देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, वे तिर्यञ्चयोनिकों से या मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। विवेचन—निष्कर्ष नागकुमार न तो नैरपिकों से पाकर उत्पन्न होते हैं और न ही देवों से; वे तिर्यञ्चों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। नागकुमार में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त असंज्ञो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में उपपातपरिमारणादि वीस द्वारों को प्ररूपणा 3. जदि तिरिवख० ? एवं जहा असुरकुमाराणं वत्तव्वया (उ० 2 स०३) तहा एतेसि पि जाव असण्णि ति। [3 प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे (नागकुमार) तिर्यञ्चों से आते हैं, तो इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [3 उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार (उ. 2 सू. 3 में) असुरकुमारों को वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार इनकी भी वक्तव्यता, यावत् असंज्ञी-पर्यन्त कहनी चाहिए / संख्येयवर्षायुष्क-प्रसंख्येयवर्षायुधक संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों की नागकुमारों में उत्पत्ति की प्ररूपणा 4. जदि सन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिएहितो० कि संखेज्जवासाउय०, असंखेज्जवासाउय० ? गोयमा! संखेज्जवासाउय०, असंखेज्जवासायउ० जाव उववज्जति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org