________________ 518] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोशालक के भावी दीर्घकालीन भवभ्रमण का दिग्दर्शन 135. विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं अणगारेण सहये जाव भासरासोकए समाणे कहिं गच्छिहिति, कहि उववजिहिति ? गोयमा ! विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालहितोयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उक्वज्जिहिति / [135 प्र. भगवन् ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि-सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? [135 उ.] गौतम ! सुमंगल अनगार के द्वारा अश्व, रथ और सारथि-सहित भस्म किये जाने पर विमलवाहन राजा अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल को स्थिति वाले नरकों में नै रयिकरूप से उत्पन्न होगा। 136. से णं ततो अणंतरं उज्वद्वित्ता मच्छेसु उपज्जिहिति / तत्थ वि णं सत्थवज्झे वाहवक्कतोए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढवोए उक्कोसकालद्वितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। [136] वहाँ से यावत् उद्वर्त (मर) कर मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भो शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर को पीड़ा से काल करके दूसरी बार फिर अधःसप्तम पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिकरूप में उत्पन्न होगा। 137. से शं ततो अणंतरं उन्धट्टित्ता दोच्च पि मच्छेसु उपजिहिति / तत्थ विणं सत्थवझे जाव किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उवजिहिति / [137] वहाँ से उद्वर्त (मर) कर फिर सीधा दूसरी बार मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहीं भो शस्त्र से वध होने पर यावत् काल कर छठो तम:प्रभा पृथ्वो में उत्कृष्ट काल को स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगा। 138. से णं तओहितो जाव उम्वट्टित्ता इत्थियासु उवन्जिहिति / तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाह. जाब दोच्चं पि छट्ठाए तमाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उवट्टित्ता दोच्चं पि इत्थियासु उपज्जिहिति / तत्थ वि णं सत्थवझे जाव किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढबीए उक्कोसकाल जाव उट्टित्ता उरएसु उवजिनहिति / तत्थ वि णं सत्यवझे जाव किच्चा दोच्चं पि पंचमाए जाव उन्धट्टित्ता दोच्चं पि उरएसु उववज्जिहिति जाब किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि जाव उव्वट्टित्ता सोहेसु उवधज्जिहिति / तत्थ वि णं सत्थवज्झे तहेव जाव किच्चा दोच्चं पि चउत्थीए पंक० जाव उन्वट्टित्ता दोच्चं पि सोहेसु उववजिहिति जाब किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उज्वट्टित्ता पक्खोसु उववज्जिहिति / तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि तच्चाए वालुय जाव उन्वट्टित्ता दोच्चं पि पक्खोसु उवव० जाब किच्चा दोच्चाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org