________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 7] 711] 9. एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाणं / [6] इसी प्रकार अवशिष्ट सभी जीवों के, यावत् वैमानिकों तक के तीनों प्रकार की उपधि होती है। 10. कतिविधे णं भंते ! परिग्गहे पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे परिग्गहे पन्नते, तं जहा--कम्मपरिग्गहे सरीरपरिग्गहे बाहिरगभंडमत्तोवगरणपरिगहे / [10 प्र.] भगवन् ! परिग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? (10 उ.] गौतम ! परिग्रह तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) कर्म-परिग्रह, (2) शरीर-परिग्रह और (3) बाह्य भाण्ड-मात्रोपकरण-परिग्रह / 11. नेरतियाणं भंते ! 0? एवं जहा उवहिणा दो दंडगा भणिया तहा परिग्गहेण वि दो दंडगा भाणियव्वा / [11 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार का परिग्रह कहा गया है ? [11 उ.] गौतम ! जिस प्रकार (नै रयिकों आदि की) उपधि के विषय में दो दण्डक कहे गए हैं, उसी प्रकार परिग्रह के विषय में भी दो दण्डक कहने चाहिए। विवेचन--उपधि और परिग्रह : स्वरूप प्रकार और चौबीस दण्डकों में प्ररूपणा-उपधि का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ इस प्रकार है-उपधीयते-उपष्टभ्यते प्रात्मा येन स उपधिः' अर्थात्-जिससे प्रात्मा शुभाशुभ गतियों में स्थिर की जाती है, वह उपधि है। उपधि की परिभाषा है--जीवननिर्वाह में उपयोगी शरीर, कर्म एवं वस्त्रादि। यह दो प्रकार की है—ग्राभ्यन्तर और बाह्य / कर्म और शरीर आभ्यन्तर उपधि है जबकि वस्त्र पात्रादि वस्तुएँ बाह्य उपधि है। उपधि के तीन भेदों में एकेन्द्रिय को छोड़ कर शेष 16 दण्डकवर्ती जीवों के शरीररूप, कर्मरूप और बाह्य भाण्डमात्रोपकरणरूप उपधि होती है / एकेन्द्रिय के बाह्य-भाण्डमात्रोपकरण-उपधि नहीं होती। नैरयिकादि जीवों के सचित्त उपधि शरीर आदि है, अचित्त उपधि उत्पत्ति-स्थान है, और, मिश्र-उपधि श्वासोच्छ्वासादिपुद्गलों से युक्त शरीर है, जो सचेतन-अचेतन दोनों रूप होने से मिश्रउपधि है / ' उपधि और परिग्रह में अन्तर-इतना ही है कि जीवन-निर्वाह में उपकारक कर्म, शरीर और वस्त्रादि उपधि कहलाते हैं, और वे ही जब ममत्वबुद्धि से गृहीत होते हैं, तब परिग्रह कहलाते हैं / उपधि के सम्बन्ध में जैसी प्ररूपणा की गई है, वैसी ही प्ररूपणा परिग्रह के सम्बन्ध में समझनी चाहिए। 1. (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 750 (ख) भगवतीसूत्र (गुजराती अनुवाद) (पं. भगवानदास दोशी) खण्ड 4, पृ. 64 2. वही, (पं. भगवानदासजी दोशी) खण्ड 4, प्र. 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org