________________ प्रकाशकीय प्रागमप्रेमी पाठकों के कर-कमलों में श्रीमदब्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र का यह अन्तिम-चतुर्थ खण्ड प्रस्तुत किया जा रहा है। भगवतीसूत्र उपलब्ध समस्त प्रागमों में सबसे विराट्काय पागम है और विविध विषयों की चर्चा से परिव्याप्त है। इसके मुद्रण की सम्पूति अतीव प्रमोद का विषय है। सद्यः उत्तरभारतीय प्रवर्तक पद पर प्रतिष्ठित विद्वद्वर मुनिश्री भण्डारी पद्मचन्द्रजी म. के विद्वान अन्तेवासी श्री अमरमुनिजी म. ने इसका अनुवाद करके आगमप्रकाशन समिति को जो महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया है, उसके लिए समिति अत्यन्त प्राभारी है। साहित्यवाचस्पति प्रतिभामूर्ति श्री देवेन्द्रमुनिजी महाराज के अनुपम सहयोग को समिति कदापि विस्मत नहीं कर सकती / अद्यावधि प्रकाशित सभी आगमों पर प्रापने विद्वत्तापूर्ण प्रस्तावनाएँ लिखी हैं। यदि यथासमय प्रस्तावनाएं आपने लिखकर उपकृत न किया होता तो प्रस्तुत प्रकाशन अति विलम्बित हो जाता। मगर अस्वस्थता, व्यस्तता एवं बिहार प्रादि के व्यवधानों के होते हए भी आपने प्रस्तावनाएँ लिखकर प्रकाशन के कार्य को द्रुत गति प्रदान की। एतदर्थ आपके प्रति भी हम हृदय से आभारी हैं। इस विराट् प्रायोजन के पुरस्कर्ता श्रद्धेय युवाचार्यश्रीजी के आकस्मिक और असामयिक स्वर्गवास के पश्चात् अध्यात्मयोगिनी महाविदुषी श्री उमरावकुंवरजी महासतीजी का पथप्रदर्शन हमारे लिए अत्यन्त प्रशस्त सिद्ध हो रहा है। किन शब्दों में उनके सहयोग के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाए ? प्रस्तुत आगम के प्रकाशन में समिति के भूतपूर्व अध्यक्ष, समाज के लिए महान् गौरवस्वरूप, धर्मनिष्ठ समाजनेता पद्मश्री स्व. सेठ मोहनमलजी सा. चोरड़िया का विशिष्ट प्रार्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है / आपके प्रादर्श व्यक्तित्व से समाज भलीभांति परिचित है। आपके जीवन की संक्षिप्त रूपरेखा पृथक् दी जा रही है, जो हमें मद्रास के क्रियाशील उत्साही सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमान् भवरलालजी साः गोठी के माध्यम से प्राप्त हुई है। सम्पादन-सहयोगी महानुभाव भी जिनकी नामावली अलग दी जा रही है, धन्यवाद के पात्र हैं। अन्त में प्रागमप्रेमी सज्जनों के प्रति निवेदन है कि प्रकाशित आगमों के प्रचार-प्रसार में अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करें, जिससे स्व. परमपूज्य युवाचार्य श्रीजी को आगमज्ञान-प्रचार की उदात्त पावन भावना साकार हो सके। भवदीय रतनचंद मोदी सायरमल चोरडिया चांदमल विनायकिया कार्यवाहक अध्यक्ष प्रधानमंत्री मंत्री श्री प्रागमप्रकाशन समिति, ब्यावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org