________________ चौवीसवां शतक : उद्देशक 1] [127 प्रथम नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त-असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तियं च के विषय में उपपात प्रादि वीस द्वारों की प्ररूपणा 4. पज्जत्तानसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोणिए गंभंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा। गोयमा ! एगाए रयणप्पभाए पुढवीए उववज्जेज्जा। [4 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त प्रसंज्ञी पंचेन्द्रियतियंञ्चयोनिक जीव, जो नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरक-पृथ्वियों में उत्पन्न होता है ? [4 उ.] गौतम ! वह एक रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है / 5. पज्जत्ताप्रसन्निपंचेंदियतिरिक्खजोगिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविनेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साहितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागद्वितीएसु उववज्जेज्जा। [5 प्र. भगवन् ! पर्याप्त-प्रसंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव, जो रत्तप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? [5 उ.] गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति बाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। 6. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! जहानेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जति। [6 प्र.] भगवन् ! वे (पर्याप्त-असंज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक) जीव (रत्नप्रभापृथ्वी में) एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [6 उ.] गौतम ! वे (एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। 7. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरगा किसंघयणा पन्नत्ता? गोयमा ! सेवट्टसंघयणा पन्नत्ता। [7 प्र. भगवन् ! उनके शरीर किससंहनन वाले होते हैं ? [7 उ.] गौतम ! वे सेवार्तसंहनन वाले होते हैं / 8. तेसि णं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं / [प्र.! भगवन् ! उन जीवों के शरीर को अवगाहना कितनी बड़ी होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org