________________ 170] [াসনিক चाहिए; क्योंकि यहाँ जघन्य स्थिति वाले असंख्यात वर्षायुष्क तिर्यञ्च का प्रकरण चल रहा है। उसकी आयु सातिरेक पूर्वकोटि की होती है। इस प्रकार का हस्ती आदि सातवें कुलकर के समय में या उससे पहले पाया जाता है / सातवें कुलकर की अवगाहना तो 500 धनुष होती है, उससे पहले होने वाले कुलकरों की अवगाहना उससे अधिक होती है और उसके समय में होने वाले हरती आदि की अवगाहना उससे दुगुनी होती है। अत: सप्तम कुलकर अथवा उससे पहले होने वाले असंख्यात वर्ष की आयु वाले हस्ती आदि में ही उपर्युक्त अवगाहना-प्रमाण पाया जाता है।' चौथे गमक में जो सातिरेक दो पूर्वकोटि की स्थिति बताई गई है उसमें एक सातिरेक पूर्वकोटि तो तिर्यञ्च-भव-सम्बन्धी जाननी चाहिए और एक सातिरेकपूर्वकोटि असुरकुमार-भवसम्बन्धी समझनी चाहिए / असुरकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की होती है और उनका संवेध सातिरेक पूर्वकोटि सहित दस हजार वर्ष का होता है। शेष गमकों के विषय में स्वयमेव विचार कर लेना चाहिए / असुरकुमार में उत्पन्न होनेवाले संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक में उपपातादि बीस द्वारों को प्ररूपरणा 17. जत्ति संखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदिय० जाव उववज्जति कि जलचर एवं जाव पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचेदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवतिकालद्वितीएस उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगसागरोवमद्वितीएम उववज्जेज्जा। [17 प्र.] भगवन् ! यदि असुरकुमार, संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यकचों से पाकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे जलचरों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि यावत--पर्याप्त संख्येयवर्षायुप्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्थञ्चयोनिक जीव जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुर कुमारों में उत्पन्न होता है ? [17 उ. गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट सातिरेक एक सागरोपम की स्थिति वाले (असुरकुमारों) में उत्पन्न होता है / 18. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं० ? एवं एएसि रयणप्पभपुढविगमगसरिसा नव गमगा नेयव्वा, नवरं जाहे अपणा जहन्नकालद्वितीयो भवति ताहे तिसु वि गमएसु इमं नाणत्तं-चत्तारि लेस्सायो; अज्झवसाणा पसत्था, नो अप्यसत्था / सेसं तं चेव / संवेहो सातिरेगेण सागरोवमेण कायध्यो। [1-6 गमगा / |18 प्र. भगवन ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? |18 उ.] (गौतम !) इनके सम्बन्ध में रत्नप्रभापृथ्वी के विषय में वर्णित नौ गमकों के 1. बही, पत्र 820 2. वही, पत्र 820 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org