________________ [79 बोसवां शतक : उद्देशक 10] चौवीस दण्डकों और सिद्धों में षट्क-सजित प्रादि पांच विकल्पों का यथायोग्य निरूपण 32. [1] नेरइया णं भंते ! कि छक्कसमज्जिया, नोछक्कसमज्जिया, छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया, छक्केहि समज्जिया, छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया? गोयमा ! नेरइया छक्कसमज्जिया वि, नोछक्कसमज्जिया वि, छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया वि, छक्केहि समज्जिया वि, छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया वि। [32-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक षट्क-समर्जित हैं, नो-षट्क-समजित हैं, (एक) षट्क और नोषट्क-सजित हैं, अथवा अनेक षट्क-समजित हैं या अनेक षटक-समजित-एक नो-षटकसमजित हैं ? [32-1 उ.] गौतम ! नै रयिक षट्क-समजित भी हैं, नो-षट्क-समजित भी हैं, और एक षट्क तथा एक नोषट्क-समर्जित भी हैं, अनेक षट्क-सजित और एक नोषट्क-समजित भी हैं। [2] से केणद्वेणं भंते एवं बुच्चइ–नेरइया छक्कसमज्जिया विजाव छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया वि? गोयमा ! जे णं नेरइया छक्कएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया छक्कसमज्जिता। जे ण नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तोहि वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया नोछक्कसमज्जिया / जे णं नेरइया एगेणं छक्कएणं; अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तोहि था, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते शं नेरइया छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया जे णं नेरइया णेगेहि छक्कएहि पवेसणगं पविसंति ते णं नेरइया छक्केहि समज्जिया। जेणं नेरइया गेहि छक्कएहि अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तोहिं वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसति ते णं नेरइया छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया। सेतेणठे तं चेव जाव समज्जिया वि। 32-2 प्र. भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि नैरयिक षट्क-समजित भी हैं, यावत् अनेक षटक-सजित तथा एक नो-षटक सजित भी हैं ? 32-2 उ.] गौतम ! जो नैरपिक (एक समय में एक साथ) छह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक 'षट्क-समजित' (कहलाते) हैं / जो नैरयिक (एक साथ) जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट पांच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नो-षट्क-सजित (कहलाते) हैं। जो नैरयिक एक षट्क संख्या से और अन्य जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पांच की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे 'षटक और नो-षटक-समजित' (कहलाते हैं। जो नैरयिक अनेक षटक संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक अनेक षटक-समजित (कहलाते) हैं। जो नैरयिक अनेक षट्क तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पांच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक 'अनेक षट्क और एक नो-षट्क-सजित' (कहलाते) हैं। इसलिए हे गौतम ! इस प्रकार कहा गया है कि यावत् अनेक षट्क और एक नो-षट्क-समजित भी होते हैं / 33. एवं जाव थणियकुमारा। , [33] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org