________________ एगवीसतिमं सयं : इक्कीसवाँ शतक इक्कीसवें शतक के आठ वर्गों के नाम तथा 80 उद्देशकों का निरूपण 1. सालि 1 कल 2 प्रयसि 3 से 4 उक्खू 5 दम्भे 6 य अब्भ 7 तुलसी 8 य / अद्वैते दसवागा असोति पुण होंति उद्देसा // 1 // [1. गाथार्थ-] (1) शालि, (2) कलाय, (3) अलसी, (4) बांस, (5) इक्षु, (6) दर्भ (डाभ), (7) अभ्र (वनस्पति), (8) तुलसी, इस प्रकार इक्कीसवें शतक में ये आठ वर्ग हैं / प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक हैं / इस प्रकार पाठ वर्गों में कुल 80 उद्देशक हैं। विवेचन –अाठ वर्गों में प्रतिपाद्य-विषय-इक्कीसवें शतक में कुल आठ वर्ग हैं। जिनमें मुख्यतया प्रतिपाद्य विषय इस प्रकार हैं-(१) शालि—इस वर्ग में शालि आदि धान्यों की उत्पत्ति आदि के विषय में वर्णन है / (2) कलाय मटर आदि दालों (धान्यों) की उत्पत्ति आदि से सम्बन्धित निरूपण है / (3) अलसी--इस वर्ग में अलसी आदि तिलहनों से सम्बन्धित वर्णन है। (4) वंस-इसमें बांस आदि वनस्पतियों का वर्णन है। (5) इक्ष-इसमें गन्ना आदि पर्ववाली वनस्पति से सम्बन्धित वर्णन है। (6) दर्भ-डाभ आदि तण के विषय में वर्णन है। (7) अभ्रइस वर्ग में अभ्र नामक वनस्पति के समान अनेक वनस्पतियों सम्बन्धी वर्णन है / (8) तुलसी- इस वर्ग में तुलसी आदि वनस्पतियों से सम्बन्धित वर्णन है।' प्रत्येक वर्ग में दस-दस उद्देशक--इस प्रकार हैं-(१) मूल, (2) कन्द, (3) स्कन्ध, (4) त्वचा, (5) शाखा, (6) प्रवाल (कोमल पत्ते), (7) पत्र, (8) पुष्प, (6) फल और (10) बीज / इस तरह प्रत्येक वर्ग में ये दस उद्देशक हैं / 1. भगवती. विवेचन भाग 6 (पं. घेवरचंदजी), प्र. 2930 2. मूले 1. कंदे 2. खंधे 3. तया 4. य साले 5. पवाल 6. पत्ते य 7 / पुप्फे फल 8-9 बीए 10 वि य एक्केक्को होइ उद्देसो // 1 // -भगवती. अ. वृत्ति, पृ. 800 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org