________________ अट्ठमै 'तुलसी' वग्गे : दस उद्देसगा अष्टम तुलसी वर्ग : दश उद्देशक चतुर्थ वंशवर्गानुसार अष्टम तुलसीवर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! तुलसी-कण्हदराल-फणेज्जा-अज्जा-भूयणा'-चोरा-जीरा-दमणा-मरुया-इंदीवरसयपुष्फाणं, एतेसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति० ? एत्य वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहा बंसाणं / ____ एवं एएसु असु बग्गेसु असीति उद्देसगा भवंति / // एगवीसतिमे सए : अट्ठमो वग्गो समत्तो // 21-8 // / / एगवीसतिमं सयं समत्तं // 21 // 12 प्र.] भगवन् ! तुलसी, कृष्णदराल, फणेज्जा, अज्जा, भूयणा (च्यणा), चोरा, जीरा, दमणा, मरुया, इन्दीवर और शतपुष्प, इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] (गौतम ! ) चौथे वंशवर्ग के समान यहाँ भी समग्र रूप से मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए। इस प्रकार इन आठ वर्गों में अस्सी उद्देशक होते हैं / विवेचन -इन आठों ही वर्गों में जिन-जिन वनस्पतियों का उल्लेख किया है, उनमें से अधिकांश वनस्पतियाँ अप्रसिद्ध है / उनकी जानकारी 'निघण्टु' प्रादि से कर लेनी चाहिए। आठों ही वर्गों में प्रथम शालिवर्ग का प्रतिदेश किया गया है। इसलिए प्रथम वर्ग में किये गए दसों उद्देशकों के विवेचन के अनुसार सभी वर्गों का विवेचन समझ लेना चाहिए / / / अष्टम वर्ग समाप्त // इक्कीसवां शतक सम्पूर्ण ..-..- -.-...-.. . 1. अज्जायणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org