________________ तेवीसइमं सयं : तेईसवाँ शतक तेईसवे शतक का मंगलाचरण 1. नमो सुयदेवयाए भगवतीए।' [1] भगवद्वाणीरूप श्रुतदेवता भगवती को नमस्कार हो / विवेचन-यह व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र का मध्य-मंगलाचरण प्रतीत होता है। तेईसवें शतक के पांच वर्गों के नाम तथा उसके पचास उद्देशकों का निरूपण 2. प्रालय 1 लोही 2 अवए 3 पाढा 4 तह मासवणि वल्ली य 5 / पंचेते दसवग्गा पण्णासं होंति उद्देसा // 1 // 2 गाथार्थ---] तेईसवें शतक में दस-दस उद्देशकों के पांच वर्ग ये हैं-(१) पालक, (2) लोही, (3) अवक, (4) पाठा और (5) माषपर्णी वल्ली। इस प्रकार पांच वर्गों के पचास उद्देशक होते हैं / / 1 / / विवेचन-पांच वर्गों का संक्षिप्त परिचय- (1) प्रथम वर्ग : पालुक में पाल, मूला, पाक, हल्दी आदि साधारण वनस्पति के प्रकार सम्बन्धी मूलादि 10 उद्देशक हैं / (2) द्वितीय वर्ग : लोही में लोही, नोहू, थीहू आदि अनन्तकायिक वनस्पति से सम्बन्धित दस उद्देशक हैं। (3) तृतीय वर्ग: प्राय में अवक आदि वनस्पति सम्बन्धी दस उद्देशक हैं / (४)चतुर्थ वर्ग : पाठा में पाठा, मृगवालु की प्रादि वनस्पति सम्बन्धी दस उद्देशक हैं और (5) पंचम वर्ग : माषपर्णी आदि वनस्पतियों से सम्बन्धित दश उद्देशात्मक है। प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक होने से इस शतक में पांचों वर्गों के 50 उद्देशक होते हैं।' 1. भगवतीसूत्र चतुर्थखण्ड (गुजराती अनुवाद, पं. भगवानदासजी सम्पादित) प्रति में (पृ. 136) यह मंगलाचरण पाठ नहीं है / —सं. 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 805 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org