________________ छठे 'वल्ली' वग्गे : दस उद्देसगा छठा 'वल्ली' वर्ग : दश उद्देशक प्रथम तालवर्गानुसार छठे वल्लिवर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! पुसफलि-कालिंगी-तुबी-तउसी-एला-वालुकी एवं पदाणि छिदियवाणि पण्णवणागाहाणुसारेणं जहा तालवग्गे जाव दधिफोल्लइ-काकलि-सोक्कलि-अक्कबोंदीणं, एएसि गं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ? एवं मूलाईया दस उद्देसगा कायव्वा जहा तालबग्गे। नवरं फलउद्देसे, अोगाहणाए जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं धणुपुहत्तं ठिती सध्वत्थ जहन्नेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं / सेसं तं चेव। एवं छसु वि बग्गेसु दि उद्देसगा भवति / // बावीसइमे सए : छट्ठो वग्गो समत्तो / / 22-6 // // बावीसतिमं सयं समत्तं 22 // [1 प्र.] भगवन् ! पूस फलिका, कालिंगी (तरबूज की बेल), तुम्बी, वपुषी (ककड़ी), एला (इलायची), बालु की, इत्यादि वल्लीवाचक पद (नाम) प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार अलग कर लेने चाहिए, फिर तालवर्ग के समान, यावत् दधिफोल्लइ, काकली (कागणी), सोक्कली और अर्कबोन्दी, इन सब बल्लियों (बेलों-लताओं) के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं / ऐसा प्रश्न समझना चाहिए। [1 उ.] गौतम ! यहाँ भी तालवर्ग के समान मूल आदि दस उद्देशक कहने चाहिए। विशेष यह है कि फलोद्देशक में फल की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट धनुष-पृथक्त्व की होती है / सब जगह स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त की और उत्कृष्ट वर्ष-पृथक्त्व की है। शेष सर्व पूर्ववत् है। पाठान्तर--१ 'दहफूल्लइ कागणि-मोगली' 2. 'फलहसओ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org