________________ तइए 'बहुबीयग' वग्गे : दस उद्देसगा तृतीय ‘बहुबोजक' वर्ग : दश उद्देशक प्रथम तालवर्गानुसार तृतीय बहुबीजकवर्ग का निरूपण 1. अह भंते ! अत्थिय-तेंदुय-बोर-कवि?,अंबाडग-माउलुग'-बिल्ल-मामलग-फणस-दाडिमपासोट-उंबर-वड-णग्गोह-नंदिरुक्ख- पिप्पलि-सतर-पिलक्खुरुक्ख - काउंबरिय- कुत्थं भरिय- देवदालितिलग-लउय-छत्तोह-सिरीस-सत्तिवण्ण-दधिवण्ण-लोद्ध-धव-चंदण-अज्जुण-णीव-कुडग-कलंबाणं, एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति ते णं भंते ! 0? एवं एत्य वि मूलाईया दस उद्देसगा तालवग्गसरिसा नेयव्वा जाव बीयं / ॥बावीसइमे सए : तइप्रो वग्गो समत्तो // 22-3 // [1 प्र.] भगवन् ! अगस्तिक, तिन्दुक, बोर, कवीठ, अम्बाडक, बिजौरा, बिल्व (बेल), आमलक (आँवला), फणस (अनन्नास), दाडिम (अनार), अश्वत्थ (पीपल), उंबर (उदुम्बर), बड़, न्यग्रोध, नन्दिवृक्ष, पिप्पली (पीपर), सतर, प्लक्षवृक्ष (ढाक का पेड़), काकोदुम्बरी, कुस्तुम्भरी, देवदालि, तिलक, लकुच (लीची), छत्रौष, शिरीष, सप्तपर्ण (सादड़), दधिपर्ण, लोध्रक (लोद), धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुटज और कदम्ब, इन सब वृक्षों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! यहाँ भी प्रथम तालवर्ग के सदृश मूल आदि (मूल से लेकर) यावत् बीज तक दस उद्देशक कहने चाहिए। // बाईसवे शतक का तृतीय वर्ग समाप्त / / 1. माउलिंग 2. आसत्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org