________________ बोसवां शतक : उद्देशक 10] [85 चौवीस दण्डकों और सिद्धों में चतुरशोति-समजित आदि पदों का यथायोग्य निरूपण 46. [1] नेरतिया णं भंते ! कि चुलसीतिसमज्जिया, नोचुलसीतिसमज्जिया, चुलसीतीए घनोचलसोतोते य समज्जिया, चुलसीतीहि समज्जिया, चुलसीतीहि य नोचुलसोतीए य समज्जिया? ____ गोयमा ! नेतिया चुलसीतिसमज्जिया वि जाव चुलसीतीहि य नोचुलसीतीए य समज्जिया वि। [46-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव चतुरशीति (चौरासी)- समजित हैं या नो-चतुरशीतिसमजित हैं, अथवा चतुरशोति-नो-चतुरशीति समजित हैं, या वे अनेक चतुरशीति-समजित हैं, अथवा अनेक-चतुरशीति-नो-चतुरशीति-समजित हैं ? [49-1 उ.] गौतम ! नैरयिक चतुरशीति-समजित भी हैं, यावत् अनेक-चतुरशीति-नोचतुरशीति-समजित भी हैं। [2] से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चद जाव समज्जिया वि ? गोयमा ! जे णं नेरइया चुलसोतोएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया चुलसीतिसमज्जिया। जे णं नेरइया जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तीहि वा, उक्कोसेणं तेसोतिपवेसणएणं पविसंति ते णं नेरइया नोचुलसीतिसमज्जिया। जे नेरइया चुलसीतीएणं; अन्नण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तोहिं बा, उक्कोसेणं तेसोतीएणं पवेसणएणं पविसंति ते गं नेरतिया चुलसीतीए य नोचुलसीतीए समज्जिया / जे णं नेरइया गेहि चुलसीतीएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं नेरतिया चुलसीतीहिं समज्जिया। जे णं नेरइया गेगेहि चुलसीतोएहि, अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा जाव उक्कोसेणं तेसीयएणं जाव पवेसणएणं पविसंति ते गं नेरतिया चुलसीतीहि य नोचुलसीतीए य समज्जिया; सेतेणठेणं जाव समज्जिया वि। [46.2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि (नैरपिक) यावत् (अनेक-चतुरशीतिनो-चतुरशीति-) समजित भी हैं ? [46-2 उ.] गौतम ! जो नैरयिक (एक समय में एक साथ) चौरासी प्रवेशनक से (84 संख्या में) प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति-समजित हैं / जो नैरयिक जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट तेयासी (83) (एक साथ) प्रवेश करते हैं, वे नो-चतुरशीति-समजित हैं। जो नैरयिक एक साथ, एक समय में चौरासी तथा जघन्य एक, दो, तीन, यावत् उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीतिनो-चतुरशीति-सजित हैं। जो नैरयिक एक साथ एक समय में अनेक चौरासी प्रवेश करते हैं, वे अनेक चतुरशीति-समजित हैं और जो नैरयिक एक-एक समय में अनेक चौरासी तथा जघन्य एकदो-तीन उत्कृष्ट तेयासी प्रवेश करते हैं. वे अनेक चतरशीति-तो-चतरशीति-सर्मा / हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि नैरयिक चतुरशीति-समजित भी हैं, यावत् अनेक चतुरशीति-नोचतुरशीति-समजित भी हैं। 50. एवं जाव थणियकुमारा। [50] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org