________________ [म्यास्याप्राप्तिसूत्र 51. पुढविकाइया तहेव पच्छिल्लएहि दोहि, नवरं अभिलायो चुलसीतिईप्रो। [51] पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में अनेक चतुरशीति-समजित और अनेक चतुरशीतिनो-चतुरशीति-समजित, ये दो पिछले भंग समझने चाहिए। विशेष यह कि यहाँ 'चौरासी' ऐसा कहना चाहिए। 52. एवं जाव वणस्सतिकाइया। [52] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक (पूर्वोक्त दो भंग) जानने चाहिए। 53. बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया। (53] द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर यावत् वैमानिकों तक नैरयिकों के समान (आलापक कहने चाहिए)। 54. [1] सिद्धाणं पुच्छा। गोयमा ! सिद्धा चुलसीतिसमज्जिता वि, नोचुलसीतिसमज्जिया वि, चुलसीतीए म नोचुलसीतीए व समज्जिया कि, नो चुलसीतीहि समज्जिया, नो चुलसीतोहि य नोचुलसीतीए य समज्जिया। [54-1 प्र.] भगवन् ! सिद्ध चतुरशीति-सजित हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? [54-1 उ.] गौतम ! सिद्ध भगवान् चतुरशीति-समजित भी हैं तथा नो-चतुरशीतिसमजित भी हैं तथा चतुरशीति-नो-चतुरशीति-समजित भी हैं, किन्तु बे अनेक चतुरशीति-सजित नहीं हैं, और न ही वे अनेक चतुरशीति-नो-चतुरशीति-समजित हैं। [2] से केणठेणं जाव समज्जिया ? गोयमा ! जे णं सिद्धा चुलसीतिएणं पवेसणएणं पविसंति ते गं सिद्धा चुलसीतिसमज्जिया। जे गंसिद्धा जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तोहिं वा, उक्कोसेणं तेसोतीएणं पवेसणएणं पविसंति ते गं सिद्धा नोचुलसीतिसमज्जिया / जे णं सिद्धा चुलसीतएणं; अन्नेण य जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तोहिं वा, उक्कोसेणं तेसीतएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं सिद्धा चुलसीतीए य नोचुलसीतीए य समज्जिया। सेतेणठेणं जाव समज्जिता / [54-2 प्र.] भगवन् ! उपर्युक्त कथन का कारण क्या है ? [54-2 उ.] गौतम! जो सिद्ध एक साथ, एक समय में चौरासी संख्या में प्रवेश करते हैं वे चतुरशीति-सजित हैं। जो सिद्ध एक समय में, जघन्य एक-दो-तीन और उत्कृष्ट तेयासी तक प्रवेश करते हैं, वे नो-चतुरशीति-सजित हैं / जो सिद्ध एक समय में एक साथ चौरासी और साथ ही जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट तयासी तक प्रवेश करते हैं, वे चतुरशीति-सजित और नोचतुरशीति-सजित हैं। इसी कारण हे गौतम ! सिद्ध भगवान् यावत् चतुरशीति-नो-चतुरशीतिसजित कहे जाते हैं। विवेचन-चतुरशीति-समजित आदि शब्दों का भावार्थ-जो जीव एक समय में एक साथ चौरासी संख्या में सामूहिकरूप से उत्पन्न हों वे चतुरशीति-समर्जित कहलाते हैं। जो एक से लेकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org