________________ चिन्तन प्रस्तुत किया है / 7 दशवकालिक, पिण्डनियुक्ति प्रति आगम ग्रन्थों में भी भिक्षाचर्या पर विस्तार से विश्लेषण किया गया है। पाप : एक चिन्तन भारतीय मनीषियों ने पाप के सम्बन्ध में भी अपना स्पष्ट चिन्तन प्रस्तुत किया है। पाप की परिभाषा करते हुए लिखा है, जो आत्मा को बन्धन में डाले, जिसके कारण आत्मा का पतन हो, जो आत्मा के आनन्द का शोषण करे और प्रात्मशक्तियों का क्षय करे, बह पाप है / 100 उत्तराध्ययनणि '01 में लिखा है--जो आत्मा को बांधता है वह पाप है। स्थानांगटीका 02 में प्राचार्य अभय देव ने लिखा है--जो नीचे गिराता है, वह पाप है; जो आत्मा के प्रानन्दरस का क्षय करता है, वह पाप है। जिस विचार और प्राचार से अपना और पर का अहित हो और जिससे अनिष्ट फल की प्राप्ति होती हो, वह पाप है। भगवतीसुत्र शतक 1, उद्देशक 8 में पाप के विषय में चिन्तन करते हुए लिखा है कि एक शिकारी अपनी आजीविका चलाने के लिये हरिण का शिकार करने हेतु जंगल में खड्ढे खोदता है और उसमें जाल बिछाता हो, उस शिकारी को किस प्रकार की क्रिया लगती है ? भगवान ने कहा कि वह शिकारी जाल को थामे हुए है पर जाल में मृग को फंसाता नहीं है, बाण से उसे मारता नहीं है, उस शिकारी को कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी ये तीन क्रियाएं लगती हैं। जब वह मृग को बांधता है पर मारता नहीं है तब उसे इन तीन क्रियानो के अतिरिक्त एक परितापनिकी चतुर्थ क्रिया भी लगती है और जब वह मृग को मार देता है तो उपर्य क्त चार क्रियाओं के अतिरिक्त उसे पांचवीं प्रापातिपात क्रिया भी लगती है। भगवतीसूत्र शतक 5, उद्देशक 6 में गणधर गौतम ने प्रश्न किया कि एक व्यक्ति आकाश में बाण फेंकता है, वह बाण आकाश में अनेक प्राणियों के, भूतों के, जीवों के और सत्वों के प्राणों का अपहरण करता है। उस व्यक्ति को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? भगवान् महावीर ने कहा-उस व्यक्ति को पांचों क्रियाएं लगती हैं। भगवतीसूत्र शतक 7, उद्देशक 10 में कालोदायो ने भगवान् महावीर से जिज्ञासा प्रस्तुत की कि दो ब्यक्तियों में से एक मग्नि को जलाता है और दूसरा अग्नि को बुझाता है। दोनों में से अधिक पाप कौन करता है? भगवान ने समाधान दिया कि जो अग्नि को प्रज्वलित करता है, वह अधिक कर्मयुक्त, अधिक क्रियायुक्त, अधिक पाश्रवयुक्त और अधिक वेदनायुक्त कमों का बन्धन करता है / उसको अपेक्षा बुझाने वाला व्यक्ति कम पाप करता है। अग्नि प्रज्वलित करने वाला पृथ्वीकायिक, अग्निकारिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और सकायिक सभी की हिंसा करता है, जबकि बुझाने वाला उससे कम हिंसा करता है। 97. भगवती. शतक 1, उद्देशक 9; शतक 5, उद्देशक 6; शतक 8, उद्देशक 6 98. दशवकालिक, अ. 3, अ. 5 91. पिण्डनियुक्ति 100. अभिधानराजेन्द्र कोश, खण्ड 5, पृष्ठ 876 101. पासयति पातयति वा पापम् / -उत्तराध्ययनचूणि पृ. 152 102. पाशयति---गुण्डयत्यात्मानं पातयति चात्मन आनन्दरसं शोषयति क्षपयतीति पापम् / -स्थामांगटीका, पृ. 16 [38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org