________________ 74] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 11. पुढविकाइया जाव मणुस्सा तिसु उच्चति / [11] पृथ्वीकायिकों से लेकर यावत् मनुष्यों तक का उद्वर्तन (उपर्युक्त) तीनों ही उपक्रमों से होता है। 12. सेसा जहा नेरइया, नवरं जोतिसिय-वैमाणिया चयंति / [12] शेष सब जीवों का उद्वर्तन नै रयिकों के समान कहना चाहिए। विशेष यह है, कि ज्योतिष्क एवं वैमानिक के लिए ('उद्वर्त्तन करते हैं' के बदले) च्यवन करते हैं, (कहना चाहिए / ) 13 नेरतिया गं भंते ! कि प्रातिडीए उववज्जति, परिड्डीए उववज्जति ? गोयमा ! आतिड्डीए उववज्जति, नो परिडीए उववति / [13 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव प्रात्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं या परऋद्धि से उत्पन्न होते हैं ? [13 उ.] गौतम ! वे आत्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं. परऋद्धि से उत्पन्न नहीं होते। 14. एवजाव वेमाणिया। [14] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए / 15. नेरतिया भंते ! कि आतिडीए उन्बट्टति, परिडीए उव्वति ? गोयमा ! प्रातिड्ढोए उबटेंति, नो परिड्डीए उम्पटेति / [15 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव प्रात्मऋद्धि से उत्तित होते हैं या पर ऋद्धि से उद्वतित होते (मरते) हैं ? [15 उ.] गौतम ! वे (नरयिक) प्रात्मऋद्धि से उद्वर्तित होते हैं, किन्तु पर ऋद्धि से उद्वर्तित नहीं होते। 16. एवं जाव वेमाणिया, नवरं जोतिसिय-वेमाणिया चयंतीति अभिलावो। [16] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए। विशेष यह है कि ज्योतिष्क और वैमानिक के लिए ('उद्वर्तन' के बदले) 'च्यवन' (कहना चाहिए / ) 17. नेरइया णं भंते ! कि आयकम्मुणा उबवज्जति, परकम्मणा उववज्जति ? गोयमा ! आयकम्मुणा उववज्जति, नो परकम्मुणा उववज्जंति / [17 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव अपने कर्म से उत्पन्न होते हैं या परकर्म से उत्पन्न होते हैं ? {17 उ.] गौतम ! वे प्रात्मकर्म से उत्पन्न होते हैं, परकर्म से नहीं। 18. एवं जाव वेमाणिया। [18] इसी प्रकार यावत् वैमानिक (तक कहना चाहिए)। 16. एवं उव्वट्टणादंडनो वि / [16] इसी प्रकार उद्वर्तना-दण्डक भी कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org