________________ पंचमो उद्देसओ : 'परमाणू' पंचम उद्देशक : परमाणु (प्रादि-विषयक) परमाणु-पुद्गल में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श-प्ररूपणा 1. परमाणपोग्गले णं भंते ! कतिवण्णे कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नसे ? गोयमा ! एगवण्णे एगगंधे एगरसे दुफासे पन्नत्ते। जति एगवण्णे--सिय कालए, सिय नोलए, सिय लोहियए, सिय हालिद्दए, सिय सुक्किलए / जति एगगंधे---सिय सुम्भिगंधे, सिय दुन्भिगंधे / जति एगरसे--सिय तित्ते, सिय कडुए, सिय कसाए, सिय अंबिले, सिय महुरे / जति दुफासे--सिय सोए य मिटे य 1, सिय सीते य लुक्खे य 2, सिय उसिणे य निदेय 3; सिय उसिणे य लुक्खे य 4 / [1 प्र. भगवन् ! परमाणु-पुद्गल कितने वर्ण, गन्ध, रस पौर स्पर्श वाला कहा गया है ? [1 उ.] गौतम ! (वह) एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा गया है / यथा-यदि एक वर्ण वाला हो तो 1. कदाचित् काला, 2. कदाचित् नीला, 3. कदाचित् लाल, 4. कदाचित् पीला और 5. कदाचित् श्वेत होता है। यदि एक गन्ध वाला होता है तो 6. कदाचित् सुरभिगन्ध और 7. कदाचित् दुरभिगन्ध वाला होता है। यदि एक रस वाला होता है तो 8. कदाचित् तीखा, 6, कदाचित् कटुक, 10. कदाचित् कसैला, 11. कदाचित् खट्टा और 12. कदाचित् मीठा (मधुर) होता है। यदि दो स्पर्श वाला होता है तो 13. कदाचित् शीत और स्निग्ध, 14. कदाचित् शीत और रूक्ष, 15. कदाचित् उष्ण और स्निग्ध पौर 16. कदाचित् उष्ण और रूक्ष होता है। [इस प्रकार परमाणु-पुद्गल में वर्ण के पांच, गन्ध के दो, रस के पांच और स्पर्श के चार, यों कुल मिला कर सोलह भंग पाए जाते हैं।] विवेचन–परमाणु-पुद्गल में प्रविरोधी दो स्पर्श-इसमें शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, इन चार स्पर्शों में से दो अविरोधी स्पर्श पाये जाते हैं। शेष स्पर्श बादर पुद्गल में ही होते हैं। परमाणु-पुद्गल में नहीं।' द्विप्रदेशी स्कन्ध में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श को प्ररूपणा 2. दुपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवण्णे / एवं जहा अट्ठारसमसए छठ्ठद्दसए (स० 18 उ० 6 सु० 7) जाव सिय चउफासे पन्नते। जति एगवण्णे-सिय कालए जाव सिय सुक्किलए। जति दुवणे-सिय कालए य नौलए य 1, सिय 1. भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 782 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org