________________ 64] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तीर्थ और प्रवचन क्या और कौन ? 14. तित्थं भंते ! तित्थं, तित्थगरे तित्थं ? गोयमा ! परहा ताव नियमं तित्थगरे, तित्थं पुण चाउव्वण्णाइण्णो समणसंघो, तंजहासमणा समणोमो सावगा साविगाम्रो / [14 प्र.] भगवन ! तीर्थ को तीर्थ कहते हैं अथवा तीर्थकर को तीर्थ कहते हैं ? [14 उ.] गौतम ! अर्हन (अरिहन्त) तो अवश्य (नियम से) तीर्थकर हैं, (तीर्थ नहीं), किन्तु तीर्थ चार प्रकार के वर्णी (वर्गों) से युक्त श्रमणसंघ है। यथा-श्रमण, श्रमणियां, श्रावक और श्राविकाएँ। 15. पवयणं भंते ! पवयणं, पावयणी पवयणं? गोयमा ! अरहा ताव नियम पावयणी, पवयणं पुण दुवालसंगे गणिपिडगे, तंजहा-पायारो जाव दिदिवाओ। {15 प्र.] भगवन् ! प्रवचन को ही प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रवचनी को प्रवचन कहते हैं ? [15 उ.] गौतम ! अरिहन्त तो अवश्य (निश्चितरूप से) प्रवचनी हैं (प्रवचन नहीं), किन्तु द्वादशांग गणिपिटक प्रवचन हैं। यथा-आचारांग यावत् दृष्टिवाद। विवेचन-तीर्थ क्या है और क्या नहीं ? संघ को तीर्थ कहते हैं / वह ज्ञानादिगुणों से युक्त होता है / तीर्थंकर स्वय तीर्थ नहीं होते, वे तीर्थ के प्रवर्तक-संस्थापक होते हैं / चाउवण्णाइण्णे : विशेषार्थ-जिसमें श्रमणादि चार वर्ण (वर्ग) हों, वह चतुर्वर्ण, उसके गुणों, क्षमादि तथा ज्ञानादि आचरणों से आकीर्ण-व्याप्त श्रमणसंघ है / चतुर्वर्ण से यहाँ ब्राह्मणादि चार वर्ण नहीं, किन्तु श्रमण-श्रमणी-श्रावक-श्राविका रूप चतुर्वर्ण समझना चाहिए / __ प्रवचन क्या है, क्या नहीं ? प्रवचन का अर्थ है जो वचन प्रकर्ष रूप से कहा जाए अर्थात् जो मुक्तिमार्ग का प्रदर्शक हो, प्रात्महितकारी हो, अबाधित हो उसे प्रवचन कहते हैं / उसका दूसरा नाम 'पागम' है / तीर्थंकर प्रवचनों के प्रणेता- प्रवचनी होते हैं, प्रवचन नहीं।' निर्ग्रन्थ-धर्म में प्रविष्ट उग्रादि क्षत्रियों द्वारा रत्नत्रयसाधना से सिद्धगति या देवति में गमन तथा चतुर्विध देवलोक-निरूपरण 16. जे इमे भंते ! उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा नाया कोरब्वा, एए णं अस्सि धम्मे प्रोगाहंति, अस्सि अट्टविहं कम्मरयमलं पवाहेति, अढ० पवा० 2 ततो पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेंति ? 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 793 (ख) प्रकर्षणोच्यतेऽभिधेयमनेनेति प्रवचनम् ----ग्रागमः / . (ग) भगवती. विवेचन भा. 6 (पं. घेवरचंदजी), पृ.२९०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org