________________ 62 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पल्योपम के तीन चौथाई भाग, अनन्तनाथ और धर्मनाथ के मध्य में पल्योपम के चतुर्थभाग तक तथा धर्मनाथ और शान्तिनाथ के मध्य में पल्योपम के चतुर्थ भाग तक कालिकश्रुत त का विच्छेद हो गया था। इसकी एक संग्रहणीगाशा इस प्रकार है "चउभागो 1 चउभागो 2 तिणि य, चउभाग 3 पलियमेगं च 4 / तिण्णव चउभागा 5 चउत्थभागो य 6 चउभागो 7 / ' भ. महावीर और शेष तीर्थकरों के समय में पूर्वश्रुत की अविच्छिन्नता की कालावधि 10. जंबुद्दोवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमोसे श्रोसप्पिणीए देवाणुपियाणं के वितियं कालं पुध्वगए अणुसज्जिस्सति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमोसे प्रोसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुवंगए अणुसज्जिस्सति / [10 प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष (भरतक्षेत्र) में इस अवपिणीकाल में प्राप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक (स्थायी) रहेगा ? [10 उ. गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवपिणी काल में मेरा पूर्वगतश्रुत एक हजार वर्ष तक (अविच्छिन्न) रहेगा। 11. जहा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमोसे प्रोसप्पिणीए देवाणुपियाणं एग वाससहस्सं पुम्वगए अणुसज्जिस्सति तहा णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमोसे प्रोसप्पिणीए अवसेसाणं तित्थगराणं केवतियं कालं पुव्वगए अणुसज्जित्था ? गोयमा ! अत्थेगइयाणं संखेज्जं कालं, अत्थेगइयाणं असंखेज्जं कालं / (11 प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, इस अवसपिणीकाल में, प्राप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत एक हजार वर्ष तक रहेगा, भगवन् ! उसो प्रकार जम्बुद्वीप के भारतवर्ष में, इस अवपिणीकाल में अवशिष्ट अन्य तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक (अविच्छिन्न) रहा था? |11 उ.] गौतम ! कितने ही तीर्थकरों का पूर्वगतश्रुत संख्यात काल तक रहा और कितने ही तीर्थंकरों का असंख्यात काल तक रहा / भगवान महावीर और भावी तीर्थंकरों में अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ को अविच्छिन्नता की कालावधि 12. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे इमोसे प्रोसप्पिणीए देवाणुपियाणं केवतियं कालं तित्थे अणुसज्जिस्सति ? 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 793 (ख) भगवती. विवेचन, भाग 6 (पं. घेवरचन्दजी), पृ. 2105 ----- --- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org