________________ चौबीसवाँ उद्देशक गति को लेकर सौधर्म-देव के उपपात का निरूपण 264, सौधर्म-देव में उत्पन्न होने वाले असंख्येय-संख्येयवर्षायुष्क संजो मनुष्यों में उपपातादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 267, ईशान से सहस्रार देव तक में उत्पन्न होने वाले तियचों व मनुष्यों के उपपातादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 268, प्रानत से सर्वार्थसिद्ध तक के देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 270 / 274 पच्चीसवां शतक प्राथमिक पच्चीसवें शतक के उद्देशकों का नाम 278 प्रथम उद्देशक लेश्यायों के भेद, अल्पबहत्व आदि का अतिदेशपूर्वक निरूपण 279, संसारी जीवों के चौदह भेदों का निरूपण 279, जघन्य और उत्कृष्ट योग को लेकर संसारी जीवों का अल्पबहुत्व निरूपण 280, प्रथम समयोत्पन्नक चतुविशति दण्डकवर्ती दो जीवों का समयोगित्व-विषमयोगित्व निरूपण 282, योग के पन्द्रह भेदों का निरूपण 284, पन्द्रह प्रकार के योगों में जघन्य-उत्कृष्ट योगों का प्रल्पबहुत्व 285 / द्वितीय उद्देशक द्रव्यों के भेद-प्रभेद तथा दोनों प्रकार के द्रव्यों की अनन्तता की प्ररूपणा 287, जीव और चौवीस दण्डकवर्ती जीवों की अजीवद्रव्य परिभोगतानिरूपण 288, असंख्येय लोक में अनन्त द्रव्यों की स्थिति 289, लोक के एक प्रदेश में पुद्गलों के चय-छेद-उपचय-प्रपचय निरूपण 290, शरीरादि के रूप में स्थित प्रस्थित द्रव्य-ग्रहण प्ररूपणा 291 / तृतीय उद्देशक संस्थान के छह भेदों का निरूपण 295, छह संस्थानों की द्रव्यार्थ तथा प्रदेशार्थ रूप से अनन्तता प्ररूपणा 295, छह संस्थानों का द्रव्यादि रूप से अल्पबहुत्व 296, संस्थानों के पांच भेद और उनकी अनन्तता का निरूपण 297, यबमध्यगत परिमण्डलादि संस्थानों की परस्पर अनन्तता की प्ररूपणा 299, सप्त नरकपृथ्वियों से लेकर ईषत्प्राम्भारा पृथ्वी तक में पांचों यवमध्य संस्थानों में परस्पर अनन्तता-प्ररूपणा 300, पांच संस्थानों में प्रदेशतः अवगाहना-निरूपण 302, पंच संस्थानों में एकत्व-बहुत्व दृष्टि से द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थता की अपेक्षा कृतयुग्मादि निरूपण 307, पांच संस्थानों में यथायोग्य कृतयुग्मादि प्रदेशावायह प्ररूपणा 309, परिमण्डलादि संस्थानों में कुत युग्मादि समय स्थिति को प्ररूपणा 312, पांच संस्थानों में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श की अपेक्षा कृतयुग्मादि प्ररूपणा 312, श्रेणियों तथा लोक-प्रलोकाकाश श्रेणियों में प्रदेशार्थ से यथायोग्य संख्यातादि प्ररूपणा 315, सामान्य श्रेणियों तथा लोक-अलोकाकाश श्रेणियों में यथायोग्य सादि-सान्तादि प्ररूपणा 316, सामान्य श्रेणियों तथा लोक-अलोकाकाश श्रेणियों में द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से कृतयुग्मादि प्ररूपणा 318, श्रेणी के प्रकारान्तर से सात भेद 320, परमाणु-पुदगल तथा द्विप्रदेशिकादि स्कन्धों की चौवीस दण्डकों में अनश्रेणि गति प्ररूपणा 321, चौवीस दण्डकों की ग्रावास-संख्या प्ररूपणा 322, द्वादशविध गणिपिटकों का अतिदेशपूर्वक निर्देश 322, नैरयिकादि सेन्द्रियादि सकायिकादि, आयुष्य बन्धक-प्रबन्धकों के अल्पबहत्व की प्ररूपणा 322 / [ 113 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org