________________ प्रथम उद्देशक गति की अपेक्षा से नैरथिकादि-उपपात-निरूपण 125, प्रथम नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त प्रसंशीपंचेन्द्रिय-तियंच के विषय में उपपात आदि बीस द्वारों की प्ररूपणा 127, नरक में उत्पन्न होने वाले संख्यात वर्षायूष्क पर्याप्त संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यंचयोनिकों की उपपात-प्ररूपणा 139, शर्कराप्रभा से तम:प्रभा नरक तक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यंच के उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 148, सप्तम नरक पृथ्वी में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय-तिर्यच के उत्पादपरिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 150, पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों की समुच्चय रूप से सातों नरकों में उपपात आदि प्ररूपणा 153, रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क मनुष्य में उपपातपरिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 155, शर्कराप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त मनुष्य में उपपात-परिमाणादि द्वारों की प्ररूपणा 158, बाल का-पंक-धम-तमःप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त-संख्येयवर्षायुष्क संजी मनुष्य में उपपात-परिमाणादि द्वारों की प्ररूपणा 161, सप्तम नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य में उपपात-परिमाणादि द्वारों की प्ररूपणा 161 / द्वितीय उद्देशक गति की अपेक्षा से असरकुमारों के उपपात की प्ररूपणा 164, असुरकुमार में उत्पन्न होने वाले पर्याप्तअसंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक की उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 164, संख्येय वर्षायुष्क-प्रसंख्येय युष्क संजी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक की असुरकुमारों में उपयातप्ररूपणा 165, असुरकुमार में उत्पन्न होने वाले असंख्येय वर्षायुष्क मंशी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक की उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 166, असुरकुमार में उत्पन्न होने वाले संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक में उपपातादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 170, संख्येयवर्षायुष्क, असंख्येयवर्षायुष्क संजो मनुष्यों को असुरकुमारों में उत्पत्ति का निरूपण 171, असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त असंख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य में उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 173 / तृतीय उद्देशक गति की अपेक्षा से नागकुमारों की उत्पत्ति का निरूपण 175, नागकुमार में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त प्रसंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिकों में उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 175, नागकुमारों में उत्पन्न होने वाले असंख्येयवर्षायष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक में उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 176, नागकुमार में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक में उपपातादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 178, नागकुमार में उत्पन्न होने वाले असंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों में उपपात-परिमाणादि बीस द्वारों की प्ररूपणा 179, नागकुमार में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य में उपपात आदि प्ररूपणा 180 / चतुर्थ से ग्यारह उद्देशक सुवर्णकुमार से स्तनितकुमार तक चौथे से लेकर ग्यारहवें उद्देशक की समग्र वक्तव्यता : तृतीय नागकुमारउद्देशकानुसार 181 / [ 110 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org