________________ युक्त उपोसथ व्रत का पाचरण करें।२४३ पण्डित सुखलालजी संपवी का यह अभिमत था कि उपासथ व्रत आजीवक सम्प्रदाय और वेदान्त परम्परा में प्रकारान्तर से प्रचलित रहा है। 244 प्रस्तुत प्रकरण में पोषध के दोनों रूप उजागर हुए हैं / एक खा-पी कर पौषध करने का और दूसरा बिना खाए-पीए ब्रह्मचर्य की माराधनासाधना करते हुए पौषध करने का। विभज्यवाद : अनेकान्तवाब भगवत्ती सूत्र शतक 12 उद्देशक 2 में जयन्ती श्रमणोपासिका का वर्णन है। उसके भवनों में सन्तभगवन्त ठहरा करते थे। इसलिए वह शय्यातर के रूप में विश्रुत थी। जैनदर्शन का उसे गम्भीर परिज्ञान था / उसने भगवान् महावीर से जीवन सम्बन्धी गम्भीर प्रश्न किये / भगवान् महावीर ने उन प्रश्नों के उत्तर स्याद्वाद की भाषा में प्रदान किये / सूत्रकृतांग में यह पूछा गया कि भिक्षु किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करे? इस प्रसंग में कहा गया है कि वह विभज्यवाद का प्रयोग करे / 245 विभज्यवाद क्या है, इसका समाधान जैन टीकाकारों ने किया है स्याद्वाद या अनेकान्तवाद / नयबाद, अपेक्षावाद, पृथक्करण करके या विभाजन करके किसी तत्त्व का विवेचन करना / मज्झिमनिकाय में शुभ माणवक के प्रश्न के उत्तर में तथागत बुद्ध ने कहाहे माणवक ! मैं यहाँ विभज्यवादी है, एकांशवादी नहीं / 246 माणवक ने तथागत से पूछा था कि गृहस्थ ही आराधक होता है, प्रवजित आराधक नहीं होता, इस पर आपकी क्या सम्मति है ? इस प्रश्न का उत्तर हो या ना में न देकर बुद्ध ने कहा-गृहस्थ भी यदि मिथ्यात्वी है तो निर्वाणमार्ग का पाराधक नहीं हो सकता / यदि त्यागी भी मिथ्यात्वी है तो वह भी अाराधक नहीं है। वे दोनों यदि सम्यक प्रतिपत्तिसम्पन्न हैं, तभी आराधक होते हैं। इस प्रकार के उत्तर देने के कारण ही तथागत अपने आप को विभज्यवादी कहते थे / क्योंकि यदि वे ऐसा कहते कि गृहस्थ पाराधक नहीं होता केवल त्यागी ही पाराधक होता है तो उनका वह उत्तर एकांशवाद होता, पर उन्होंने त्यागी या गृहस्थ की आराधना और अनाराधना का उत्तर विभाग कर के दिया इसलिए यह स्मरण रखना चाहिए कि बुद्ध ने सभी प्रश्नों के उत्तर विभज्यवाद के आधार से नहीं दिये हैं। कुछ ही प्रश्नों के उत्तर उन्होंने विभज्यवाद को आधार बनाकर दिये हैं / तथागत बुद्ध का विभज्यवाद बहुत ही सीमित क्षेत्र में रहा पर महावीर के विभज्यवाद का क्षेत्र बहुत ही व्यापक रहा / आगे चलकर बुद्ध का विभज्यवाद एकान्तवाद में परिणत हो गया तो महावीर का विभज्यवाद व्यापक होता चला गया और वह अनेकान्तवाद के रूप में विकसित हा / 24. तथागत के विभज्यवाद की तरह महावीर का विभज्यवाद भगबती में अनेक स्थलों पर पाया है। जयन्ती के प्रश्नोत्तर विभज्यवाद के रूप को स्पष्ट करते हैं। अतः हम कुछ प्रश्नोत्तर दे रहे हैं जयंती-भते ! सोना अच्छा है या जागना ? महावीर-कितनेक जीवों का सोना अच्छा है और कितनेक जीवों का जागना अच्छा है। 243. अंगुत्तरनिकाय 3/37 244. दर्शन और चिन्तन, भाग-२, पृ.१०५ 245. "भिक्खू विभज्जवायं च वियागरेज्जा" -सूत्रकृतांग 1/14/22 246. दीघनिकाय 33, संगितिपरियाय सुत्त में चार प्रश्नव्याकरण 247. आगमयुग का जनदर्शन, प.५४, पं. दलसुख मालबणिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org