________________ चके हैं, जैसे- मल-मूत्र, श्लेष्म-केश आदि। 3. विस्त्रसापरिणत-ऐसे पुदगल जिनके परिणमन में जीव की सहायता नहीं होती / वे स्वयं ही परिणत होते हैं, जैसे- बादल, इन्द्रधनुष आदि / शतक 14, उद्देशक 4 मे यह बताया है कि पुद्गल शाश्वत भी हैं और प्रशाश्वत भी हैं। वे द्रव्यरूप से शाश्वत और पर्याय रूप से प्रशाश्वत है। परमाणु संघात (कंछ) रूप में परिणत होकर पुन: परमाणु हो जाता है। इस कारण से वह द्रव्य की रष्टि से चरम नहीं है किन्तु क्षेत्र, काल, भाव की दृष्टि से वह चरम भी है और अचरम भी है। भगवतीसूत्र शतक 5, उद्देशक 8 में बताया है कि परमाणु, परमाणु के रूप में कम से कम रहे तो एक समय और अधिक से अधिक समय तक रहे तो असंख्यात काल तक रहता है। इसी प्रकार रूप में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रहता है। इसके बाद अनिवार्य रूप से उस में परिवर्तन होता है। एक परमाण स्कन्धरूप में परिणत होकर पुनः परमाणु हो जाय तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल लग सकता है। द्वयणुक-ग्रादि द व्यणुक-त्रादि स्कन्धरूप में परिणत होने के बाद व परमाणु पुन: परमाणु रूप में पाये तो कम से कम एक समय और अधिक से अधिक अनन्त काल लग सकता है। एक परमाणु या स्कन्ध किसी आकाशप्रदेश में अवस्थित है / वह किसी कारण-विशेष से वहाँ से चल देता है और पुनः उसी आकाशप्रदेश में कम से कम एक समय में और अधिक से अधिक अनन्तकाल के पश्चात प्राता है। परमाण द्रव्य और क्षेत्र की दृष्टि से अप्रदेशी है। काल की दृष्टि से एक समय की स्थिति वाला परमाणु प्रप्रदेशी है और उससे अधिक समय की स्थिति बाला सप्रदेशी है। भाव को दृष्टि से एक गुण वाला प्रप्रदेशी है और अधिक गूण वाला सप्रदेशी है। इस प्रकार प्रप्रदेशित्व और सप्रदेशित्व के सम्बन्ध में भी वहाँ विस्तार से चर्चा है। पुद्गल जड़ होने पर भी गतिशील है। भगवती सूत्र शतक 16, उद्देशक 8 में कहा है-पुदगल का गतिपरिणाम स्वाभाविक धर्म है। धर्मास्तिकाय उसका प्रेरक नहीं पर सहायक है। प्रपन है-परमाणु में गति स्वतः होती है या जीव के द्वारा प्रेरणा देने पर होती है ? उत्तर है-परमाण में जीवनिमित्तक कोई भी क्रिया या गति नहीं होती, क्योंकि परमाणु जीव के द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता और पुदगण को ग्रहण किये बिना पुदगल में परिणमन कराने को जोव में सामर्थ्य नहीं है। भगवतीसूत्र शतक 5, उद्देशक 7 में कहा गया है-परमाण सकम्प भी होता है और अकम्प भी होता है / कदाचित् वह चंचल भी होता है, नहीं भी होता / उसमें निरन्तर कम्पनभाव रहता हो हो यह बात भी नहीं है और निरन्तर अकम्पनभाव रहता हो यह बात भी नहीं है। द्वयणुक स्कन्ध में कदाचित् कम्पन और कदाचित अकम्पन दोनों होते हैं। उनके द्वय श होने से उनमें देशकम्पन और देश अकम्पन दोनों प्रकार की स्थिति होती है। त्रिप्रदेशी स्काध में भी द्विप्रदेशी स्कन्ध के सदश कम्प और अकम्प की स्थिति होती है। केवल देशकम्प में एकवचन और द्विवचन सम्बन्धी विकल्पों में अन्तर होता है। जैसे एक देश में कम्प होता है, देश में कम्प नहीं होता। देश में कम्प होता है, देशों में कम्प नहीं होता। देशो में कम्प होता है देश में कम्प नहीं होता। इस प्रकार चत:प्रदेशी स्वन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक समझना चाहिए। भगवतीसूत्र शतक 2, उद्देशक 1 में पुद्गल परमाणु की मुख्य पाठ वर्गणाएँ मानी हैं [ 95 ] Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org