________________ है। पुद्गल में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श होते हैं। वर्ण का हमारे शरीर, हमारे मन, आवेग और कषायों से अत्यधिक सम्बन्ध है / शारीरिक स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य, मन का स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य, आवेगों की वृद्धि और कमी- ये सभी इन रहस्यों पर प्राधत हैं कि हमारा किन-किन रंगों के प्रति रुझान है तथा हम किन-किन रंगों से प्राषित और विकषित होते हैं। नीला रंग जब शरीर में कम होता है तब क्रोध को मात्रा बढ़ जाती है / नीले रंग की पूर्ति होने पर क्रोध स्वतः ही कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी होने पर स्वास्थ्य लड़खड़ाने लगता है। लाल रंग की न्यूनता से प्रालस्य और जड़ता बढ़ने लगती है। पीले रंग की कमी से ज्ञानतन्तु निष्क्रिय हो जाते हैं और जब ज्ञानतन्तु निष्क्रिय हो जाते हैं, तब समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता। काले रंग की कमी होने पर प्रतिरोध को शक्ति कम हो जाती है। रंगों के साथ मानव के शरीर का कितना गहन सम्बन्ध है, यह इससे स्पष्ट है। 'नमो अरिहंताणं' का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ किया जाय / श्वेत वर्ण हमारी आन्तरिक शक्तियों को जागत करने में सक्षम है। वह समूचे ज्ञान का संवाहक है। श्वेत वर्ण स्वास्थ्य का प्रतीक है। हमारे शरीर में रक्त की जो कोशिकाएँ हैं, वे मुख्य रूप से दो रंग की हैं-श्वेत रक्तकणिकाएँ (W. B.C.) और लाल रक्तकणिकाएँ (R. B. C.) / जब भी हमारे शरीर में इन रक्तकणिकानों का संतुलन बिगड़ता है तो शरीर रुग्ण हो जाता है। 'नमो अरिहंताणं' का जाप करने से शरीर में श्वेत रंग की पूर्ति होती है। 'नमो सिचाण' का बाल सूर्य जैसा लाल वर्ण है। हमारी प्रान्तरिक दृष्टि को लाल वर्ण जाग्रत करता है। पीट्यूटरी ग्लेण्डस् के अन को लाल रंग नियन्त्रित करता है। इस रंग से शरीर में सक्रियता प्राती है / 'नमो सिद्धाणं' मन्त्र, लाल वर्ण और दर्शन केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित करने से स्फति का संचार होता है। 'नमो आयरिवाण'-इसका रंग पीला है। यह रंग हमारे मन को सक्रिय बनाता है। शरीरशास्त्रियों का मानना है कि थायराइड ग्लेण्ड पावेगों पर नियन्त्रण करता है। इस पन्थि का स्थान कंठ है। प्राचार्य के पीले रंग के साथ विशुद्धि केन्द्र पर 'नमो आयरियाणं' का ध्यान करने से पवित्रता की संवृद्धि होती है। 'नमो उवज्झायाण' का रंग नीला है। शरीर में नीले रंग की पूर्ति इस पद के जप से होती है। यह रंग शान्तिदायक है, एकाग्रता पैदा करता है और कषायों को शान्त करता है। 'नमो उवज्झायाण' के जप से आनन्द केन्द्र सक्रिय होता है। 'नमो लोए सम्बसाहणं' का रंग काला है। काला वर्ण अवशोषक है। शक्तिकेन्द्र पर इस पद का जप करने से शरीर में प्रतिरोध शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार वर्गों के साथ नमोक्कार महामन्त्र का जप करने का संकेत मन्त्रशास्त्र के ज्ञाता आचार्यों ने किया है। अन्य अनेक दृष्टियों से नमस्कार महामन्त्र के सम्बन्ध में चिन्तन किया गया है। विस्तार भय से उस सम्बन्ध में हम उन सभी की चर्चा नहीं कर रहे है / जिज्ञासु तत्सम्बन्धी साहित्य का अवलोकन करें तो उन्हें चिन्तन की अभिनव सामग्री प्राप्त होगी और वे नमस्कार महामन्त्र के अदभुत प्रभाव से प्रभावित होंगे। नमस्कार महामन्त्र को आचार्य अभयदेव ने भगवती सूत्र का अंग मानकर व्याख्या की है। प्रावश्यकनियुक्ति में नियुक्तिकार ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है-पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार कर सामायिक करनी चाहिए / यह पंच-नमस्कार सामायिक का एक अंग है। इससे यह स्पष्ट है कि नमस्कार महामन्त्र उतना ही पुराना है जितना सामायिक सूत्र / सामायिक आवश्यकसूत्र का प्रथम अध्ययन है। प्राचार्य देववाचक ने पागमों की सची में आवश्यकसूत्र का उल्लेख किया है। सामायिक के प्रारम्भ में और उसके अन्त में नमस्कार मन्त्र का पाठ किया जाता था / कायोत्सर्ग के प्रारम्भ और अन्त में भी पंचनमस्कार का विधान है। नियुक्ति के अभिमतानुसार नन्दी 60. कयपंचनमोक्कारो करेइ सामाइयं ति सोऽभिहितो। सामाइयंगमेव य ज सो सेसं अतो वोच्छ / / - अावश्यकनियुक्ति, गाथा 1027 [26] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org