________________ 738] [আসেন্ধুি चौबीस दण्डकों में भव्य-द्रव्यनैरयिकादि की स्थिति का निरूपण 10. भविषदन्बनेरइयस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुन्चकोडी। [10 प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-नै रयिक को स्थिति कितने काल की कही गई है ? [10 उ.] गौतम ! उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट (अधिक से अधिक) पूर्वकोटि वर्ष (करोड़ पूर्व वर्ष) की कही गई है। 11. भवियदव्वप्नसुरकुमारस्स णं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं तिन्नि पलिश्रोवमाई। [11 प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-असुरकुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [11 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। 12. एवं जाव थणियकुमारस्स / [12] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। 13. भवियदत्वपुढविकाइयस्स णं पुच्छा / गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगाई दो सागरोवमाई। [13 प्र.] भगवन् ! भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [13 उ.] गौतम ! (उसकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है। 14. एवं प्राउकाइयस्स वि / [14] इसी प्रकार अप्कायिक की स्थिति (के विषय में कहना चहिए)। 15. तेउ-वाऊ जहा नेरइयस्स / [15] भव्यद्रव्य अग्निकायिक एवं भव्य-द्रव्य-वायुकायिक की स्थिति नैरयिक के समान है। 16. वणस्सइकाइयस्स जहा पुढविकाइयस्स / [16] वनस्पतिकायिक की स्थिति पृथ्वीकायिक के समान समझनी चाहिए / 17. बेईदिय-तेइंदिय-चतुरिदियस्स जहा नेरइयस्स। [17] (भव्यद्रव्य-) द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय की स्थिति भी नैरयिक के समान जाननी चाहिये। 18. पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। [18] (भव्यद्रव्य-) पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक की स्थिति जघन्य अन्तमुहर्त की है और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम काल की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org