________________ 770] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सरीराणं जावतिया सरीरा से एगे सुहमे आउसरीरे / असंखेज्जाणं सुहुम ग्राउकाइयसरीराणं जावतिया सरोरा से एगे पुढविसरोरे / असंखेज्जाणं सुहमपुढविकाइयाणं जावतिया सरीरा से एगे बायरवाउसरीरे प्रसंखेज्जाणं बादरवाउकाइयाणं जावतिया सरीरा से एगे बादरतेउसरीरे। प्रसंखेज्जाणं बादरतेउकाइयाणं जावतिया सरीरा से एगे बायरआउसरोरे / असंखेज्जाणं बादरग्राउकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे बादरपुढविसरोरे, एमहालए णं गोयमा ! पुढविसरोरे पन्नत्ते / [31 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर कितना बड़ा (महाकाय) कहा गया है ? [31 उ.] गौतम ! अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म वायुकाय का शरीर होता है। असंख्यात सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म अग्तिकाय का शरीर होता है / असंख्य सूक्ष्म अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सक्ष्म अप्काय का शरीर होता है / असंख्य सूक्ष्म अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक सूक्ष्म पृथ्वीकाय का शरीर होता है, असंख्यसूक्ष्म पृथ्वीकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर वायुकाय का शरीर होता है। असंख्य बादर वायुकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अग्निकाय का शरीर होता है। असंख्य बादर अग्निकाय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर अप्काय का शरीर होता है / असंख्य बादर अप्काय के जितने शरीर होते हैं, उतना एक बादर पृथ्वीकाय का शरीर होता है। हे गौतम ! (अप्काय प्रादि अन्य कायों को अपेक्षा) इतना बड़ा (महाकाय) पृथ्वीकाय का शरीर होता है / विवेचन—पृथ्वीकाय के शरीर को महाकायता का माप-प्रस्तुत स. 31 में पृथ्वी काय का शरीर दूसरे अप्कायादि की अपेक्षा कितना बड़ा है ? इसे सदृष्टान्त निरूपण किया गया है / मापकयंत्र-१-असंख्य सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के शरीर-एक सूक्ष्म वायुशरीर २--असंख्य सूक्ष्म वायुकायिक-शरीर-एक सूक्ष्म अग्नि-शरीर 3- असंख्य सूक्ष्म अग्नि-शरीर-एक सूक्ष्म अप्कायशरीर ४-असंख्य सक्ष्म अप्कायशरीर---एक सूक्ष्म पृथ्वीशरीर ५-असंख्य सूक्ष्म पृथ्वीशरीर-एक बादर वायु-शरीर ६-असंख्य बादर वायु-शरीर-एक बादर अग्नि-शरीर 7- असंख्य बादर अग्नि-शरीर-एक बादर अप्कायशरीर ८-असंख्य बादर अप्कायिकशरीर--एक बादर पृथ्वी-शरीर पृथ्वीकाय के शरीर की अवगाहना 32. पुढविकायस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा ! से जहानामए रन्नो चाउरंतचक्कट्टिस्स वण्णगपेसिया सिया तरुणी बलवं जुगवं जुवाणी अप्पातका, वरुणओ, जाव निउणसिप्पोवगया, नवरं 'चम्मेद्वदुहणमुट्टियसमाहयणिचितगत्तकाया' न भण्णति, सेसं तं चेव जाव निउणसिप्पोवगया, तिक्खाए वइरामईए सहकरणीए तिक्खेणं वइरामएणं वट्टावरएणं एगं महं पुढविकायं जउगोलासमाणं गहाय पडिसाहरिय पडिसाहरिय पडिसंखिविय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org