________________ 772] {व्याख्याप्रशस्तिसूत्र से (पूरी ताकत लगा कर) पीसे / आलिद्धालगते-चिपटते हैं, या स्पर्श करते हैं। संघट्टिया-रगड़े जाते हैं, संषित होते हैं / परियाविया-पीड़ित होते हैं। उद्दविया—मारे जाते हैं या उपद्रवित होते हैं। पिट्ठा--पिस जाते हैं। एमहालिया--इतनी महती-अतिसूक्ष्म / चम्मेढ़-दुहण मुट्ठिय-समाह्यणिचित गत्तकाया-चर्मेष्ट, दूधण और मौष्टिकादि व्यायाम-साधनों से सुदृढ़ हुए शरीरयुक्त / एकेन्द्रिय जीवों की अनिष्टत रवेदनानुभूति का सदृष्टान्त निरूवण 33. पुढविकाइए णं भंते ! अक्कते समाणे केरिसियं वेयणं पच्चणुभवमाणे विहरति ? गोयमा ! से जहानामए केयि पुरिसे तरुणे बलवं जाब निउणसिप्पोवगए एगं पुरिसं जुग्णं जराजज्जरियदेहं जाव दुब्बलं किलंतं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहणिज्जा, से णं गोयमा ! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहए समाणे के रिसियं वेयणं पच्चणुभवमाणे विहरइ ?' 'अणि समणाउसो!' तस्स णं गोथमा ! पुरिसस्स वेदणाहितो पुढविकाए अक्कते समाणे एत्तो अणिद्वतरियं चेव प्रकंततरियं जात्र प्रमणामतरियं चेव वेयणं पच्चणुभवमाणे विहरइ / [33 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव को पाक्रान्त करने (दबाने या पीड़ित करने पर वह कैसी वेदना (पीड़ा) का अनुभव करता है ? [33 उ.] गौतम ! जैसे कोई तरुण, बलिष्ठ यावत् शिल्प में निपुण हो, वह किसी वृद्धावस्था से जीर्ण, जराजर्जरित देह वाले यावत् दुर्बल, ग्लान (क्लान्त) के सिर पर मुष्टि से प्रहार करे (मुक्का मारे) तो उस पुरुष द्वारा मुक्का मारने पर वृद्ध कैसी पीड़ा का अनुभव करता है ? [गौतम--] आयुष्मन् श्रमणप्रवर ! भगवन् ! वह वृद्ध अत्यन्त अनिष्ट पीड़ा का अनुभव करता है / (भगवान्-) इसी प्रकार, हे गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव को प्राक्रान्त किया जाने पर, वह उस वृद्धपुरुष को होने वाली वेदना की अपेक्षा अधिक अनिष्टतर (अप्रिय) यावत् अमनामतर (अत्यन्त अमनोज्ञ) पीड़ा का अनुभव करता है। 34. आउयाए णं भंते ! संघट्टिए समाणे केरिसियं वेयणं पच्चणुभवमाणे विहरइ ? गोयमा ! जहा पुढविकाए एवं चेव / [34 प्र.] भगवन् ! अप्का यिक जीव को स्पर्श या घर्षण (संघट्ट) किये जाने पर वह कैसी वेदना का अनुभव करता है ? पृथ्वीकायिक जीवों के समान अप्काय के जीवों के विषय में समझना चाहिए। 35. एवं तेउयाए वि। [35] इसी प्रकार अग्निकाय के विषय में भी जानना / 36. एवं वाउकाए वि। [36] वायुकायिक जीवों के विषय में भी पूर्ववत् जानना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org