________________ उन्नीसवां शतक : उद्देशक 8] ___ गोयमा ! चउन्विहा सन्नाणिव्यत्ती पन्नत्ता, तं जहा--आहारसन्नानिवत्ती जाव परिग्गहसन्नानिवत्ती। [32 प्र.] भगवन् ! संज्ञानिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [32 उ.] गौतम ! संज्ञा-निर्वृत्ति चार प्रकार की कही गई है, यथा--प्राहारसंज्ञानिर्वृत्ति यावत् परिग्रह-संज्ञानिर्वति / 33. एवं जाव वेमाणियाणं / _ [33] इस प्रकार (नरयिकों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक, (संज्ञानिवृत्ति का कथन करना चाहिए।) 34. कतिविधा भंते ! लेस्सानिव्वत्ती पन्नता? गोयमा ! छविहा लेस्सानिवत्ती पन्नत्ता, तं जहा-कण्हलेस्सानिवत्ती जाव सुक्कलेस्सानिब्यत्ती। [34 प्र.] भगवन् ! लेश्यानिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [34 उ.] गौतम ! लेश्यानिर्वत्ति छह प्रकार की कही गई है, यथा---कृष्णलेश्यानिर्वृत्ति यावत् शुक्ल-लेश्यानिवृत्ति / 35. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति लेस्साओ / [35] इस प्रकार (नरयिकों से लेकर) यावत् वैमानिक-पर्यन्त (लेश्यानिवत्ति यथायोग्य कहनी चाहिए !) परन्तु जिसके जितनी लेश्याएँ हों, उतनी ही लेश्यानिवृत्ति कहनी चाहिए / 36. कतिविधा णं भंते ! दिद्विनिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! तिथिहा दिट्ठिनिम्वत्ती पन्मत्ता, तं जहा- सम्मििटुनिव्वत्ती, मिच्छाविद्विनिम्वत्ती, सम्मामिच्छादिट्ठिनिम्वत्ती। [36 प्र.] भगवन् ! दृष्टि-निवत्ति कितने प्रकार की कही गई ? [36 उ.] गौतम ! दष्टिनित्ति तीन प्रकार की कही गई है। यथा-सम्यग्दृष्टिनित्ति, मिथ्यादृष्टि निर्वृत्ति और सम्यमिथ्यादृष्टि निर्वृत्ति / 37. एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जतिविधा दिट्टी। [37] इसी प्रकार यावत् वैमानिक-पर्यन्त (दृष्टिनित्ति कहनी चाहिए।) परन्तु, जिसके जो दृष्टि हो, (तदनुसार दृष्टि-निर्वृत्ति कहना चाहिए / ) 38. कतिविहा णं भंते ! नाणनिव्वत्तो पन्नत्ता ? गोयमा! पंचविहा नाणनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा--आभिणिवोहियनाणनिव्वत्तो जात केवलनाणनिव्वत्ती। [38 प्र.] भगवन् ! ज्ञाननिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org