________________ 790 व्याख्याप्राप्तसूत्र [8 प्र.] भगवन् ! शरीरनित्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [8 उ.] गौतम ! शरीरनिति पांच प्रकार की कही गई है। यथा---ौदारिकशरीरनिर्वृत्ति यावत् कार्मणशरीरनिर्वृत्ति / 9. नेरतियाणं भंते ! . एवं चेव / [प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की शरीरनिवत्ति कही गई है ? [6 उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। 10. एवं जाय वेमाणियाणं, नवरं नायव्वं जस्स जति सरीराणि / [10] इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष यह कि जिसके जितने शरीर हों, उतनी निवृत्ति कहनी चाहिए / 11. कतिविधिा णं भंते ! सविदियनिवत्ती पन्नता? गोयमा ! पंचविहा सबिदियनिवत्ती पन्नत्ता, तं जहा-सोतिदिय निवत्ती जाव फासिदियनिव्वत्ती। [11 प्र.] भगवन् ! सर्वेन्द्रियनिति कितने प्रकार की कही गई है ? [11 उ.] गौतम ! सर्वेन्द्रियनिवृत्ति पांच प्रकार की कही गई है। यथा-श्रोत्रेन्द्रियनिर्वृत्ति यावत् स्पर्शेन्द्रियनिर्वृत्ति / 12. एवं जाव नेरइया जाव थणिकुमाराणं / [12] इसी प्रकार नरयिकों से लेकर यावत् स्तनितकुमार-पर्यन्त जानना चाहिए / 13. पुढविकाइयाणे पुच्छा। गोयमा ! एगा फासिदियविदियानम्वत्ती पन्नत्ता / [13 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की कितनी इन्द्रियनिर्व त्ति कही गई है ? [13 उ.] गौतम ! उनकी एक मात्र स्पर्शेन्द्रियनिर्वृत्ति कही गई है। 14. एवं जस्स जति इंदियाणि जाव वेमाणियाणं। [14] इसी प्रकार जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, उतनी इन्द्रियनिर्वत्ति यावत्-वैमानिकपर्यन्त कहनी चाहिए। 15. कतिविधा णं भंते ! भासानिव्वत्ती पन्नता ? गोयमा ! चउस्विहा भासानिधत्ती पन्नत्ता, तं जहा—सच्चभासानिम्वत्ती, मोसमासानिध्वत्ती, सच्चामोसमासानिव्वत्ती, असच्चामोसमासानिव्वत्ती। [15 प्र.] भगवन् ! भाषानिति कितने प्रकार की कही गई है ? [15 उ.] गौतम ! भाषा-निर्वृत्ति चार प्रकार की कही गई है / यथा---सत्यभाषानिर्वत्ति, मृषाभाषानिर्वृत्ति, सत्यामृषाभाषा-निवृत्ति और असत्याऽमृषा-भाषानिर्वृत्ति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org