________________ उन्नीसवां शतक : उद्देशक ) [789 [4] इस अभिलाप द्वारा पाठवें शतक के नौवें उद्देशक के (सू. 60-91 में) बृहद् बन्धाधिकार में कथित तैजस शरीर के भेदों के समान यहाँ भी जानना चाहिए, यावत् [4 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थ सिद्धअनुत्तरौपपातिकवैमानिक-देव-पंचेन्द्रियजीवनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? [4 उ.] गौतम ! यह निर्वत्ति दो प्रकार की कही गई है। यथा-पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकवैमानिक-देवपंचेन्द्रियजीवनिर्वृत्ति और अपर्याप्त सर्वार्थ सिद्धअनुत्तरौपपातिकवैमानिकदेवपचेन्द्रियजीवनिर्वति। विवेचन-निवृत्ति और जीवनिर्वृत्ति : स्वरूप और भेद-प्रभेद-नित्ति का अर्थ हैनिष्पत्ति, रचना, बनावट की पूर्णता / जीवों की एकेन्द्रियादि पर्याय रूप से निष्पत्ति या पूर्ण रचना होना जोवनिर्वृत्ति है। एकेन्द्रिय नामकर्म के उदय से पृथ्वीकायिकादि रूप से जीव की निर्वृत्ति होना एकेन्द्रिय-जीवनिर्वृत्ति है / शेष स्पष्ट है / ' कर्म-शरीर-इन्द्रिय आदि 18 बोलों को निर्वृत्ति के भेदसहित चौबीस दण्डकों में निरूपण 5. कतिविधा णं भंते ! कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नता, तं जहा-नाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती जाव अंतराइयकम्मनिव्यत्ती। [5 प्र.] भगवन् ! कर्मनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? {5 उ.] गौतम ! कर्मनिवत्ति आठ प्रकार की कही गई है। यथा—ज्ञानावरणीयकर्मनिर्वृत्ति, यावत् अन्तराय-कर्मनिवृत्ति / 6. नेरतियाणं भंते ! कतिविधा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता ? गोयमा ! अट्ठविहा कम्मनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा-नाणावरणिज्जकम्मनिव्वत्ती, जाव अंतराइयकम्मनिव्वत्ती। [6 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों की कितने प्रकार की कर्मनिवृत्ति कही गई है ? [6 उ.] गौतम ! उनको पाठ प्रकार की कर्मनिवृत्ति कही गई है / यथा-ज्ञानावरणीयकर्म निर्वृत्ति, यावत् अन्तरायकर्मनिवृत्ति / 7. एवं जाव वेमाणियाणं / [7] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक की कर्मनिवृत्ति के विषय में जान लेना चाहिए / 8. कतिविधा गं भंते ! सरीरनिव्यत्ती पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविधा सरीरनिव्वत्ती पन्नत्ता, तं जहा-ओरालियसरीरनिवत्ती जाव कम्मगसरीरनिव्वत्ती। 1. भगवती. हिन्दीविवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. 6, पृ. 2812 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org