________________ 760] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 5. ते णं भंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी ? . गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी, नियमा दुअन्नाणी, तं जहा–मतिअन्नाणी य सुयअन्नाणी य / [5 प्र.] भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी ? [5 उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं। उनमें दो अज्ञान निश्चित रूप से पाए जाते हैं-मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान / 6. ते णं भंते ! जीवा कि मणजोगी, वहजोगी, कायजोगी ? गोयमा! नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। [6 प्र.] भगवन् ! क्या वे जीव मनोयोगी हैं, वचनयोगी हैं, अथवा काययोगी हैं ? [6 उ.] गौतम ! वे न तो मनोयोगी हैं, न वचनयोगी हैं, किन्तु काययोगी हैं। 7. ते णं भंते ! जीवा कि सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि। [7 प्र.] भगवन् ! वे जीव साकारोपयोगी हैं या अनाकारोपयोगी हैं ? [7 उ.] गौतम ! वे साकारोपयोगी भी हैं और अनाकारोपयोगी भी। 8. ते णं भंते ! जीवा किमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! दवओ अणंतपएसियाई दवाई एवं जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए जाव सव्वाप्पणयाए आहारमाहारैति / [8 प्र.] भगवन् ! वे (पृथ्वीकायिक) जीव क्या अाहार करते हैं ? [8 उ.] गौतम! वे द्रव्य से- अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का प्राहार करते हैं, इत्यादि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र के (28 वें पद के) प्रथम आहारोद्देशक के अनुसार यावत्-सर्व प्रात्मप्रदेशों से आहार करते हैं, यहाँ तक (जानना चाहिए।) 6. ते णं भंते ! जीवा जमाहारेति तं चिज्जति, जं नो प्राहारेंति तं नो चिज्जइ, चिण्णे वा से उद्दाति पलिसप्पति वा ? हंता, गोयमा ! ते णं जीवा जमाहारेति तं चिज्जति, जं नो जाव पलिसप्पति वा / 19 प्र. भगवन् ! वे जीव जो प्राहार करते हैं, क्या उसका चय होता है, और जिसका आहार नहीं करते, उसका चय नहीं होता? जिस आहार का चय हुआ है, वह आहार (असारभागरूप में) बाहर निकलता है ? और (साररूप भाग) शरीर-इन्द्रियादि रूप में परिणत होता है ? [प्र.] गौतम ! वे जो पाहार करते हैं, उसका चय होता है, और जिसका पाहार नहीं करते, उसका चय नहीं होता, यावत् सारभागरूप आहार शरीर, इन्द्रियादिरूप में परिणत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org