________________ 752] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वन्दन-नमस्कार करके यावत् अपने घर लौट गया। इस प्रकार सोमिल ब्राह्मण श्रमणोपासक हो गया। अब वह जीव-ग्रजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता होकर यावत् विचरने लगा। विवेचन-प्रस्तुत सू. 18 में वर्णन है कि भगवान के द्वारा किये गए समाधान से सन्तुष्ट मोमिल ब्राह्मण प्रतिबुद्ध हुआ। उसने भगवान् से श्रद्धापूर्वक श्रावकधर्म स्वीकार किया। समग्र वृत्तान्त द्वितीय शतक में कथित स्कन्दक एवं राजप्रश्नीय सूत्र में कथित चित्तसारथि के अतिदेशपूर्वक संक्षेप में प्रतिपादित किया गया है / सोमिल के प्रबजित होने आदि के सम्बन्ध में गौतम के प्रश्न का भगवान् द्वारा समाधान 26. 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वं. 2 एवं वदासिपभू णं भंते ! सोमिले माहणे देवाणुपियाणं अंतिय मुंडे भवित्ता ? जहेव संखे (स० 12 उ० 1 सु० 31) तहेव निरवसेसं जाव अंतं काहिति / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाब विहरति / // अट्ठारसमे सए : दसमो उद्देसओ समतो // 18-10 // || अद्वारसमं सयं समत्तं // 18 // [26 प्र.] 'भगवन् !' इस प्रकार सम्बोधित कर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा-'भगवन् ! क्या सोमिल ब्राह्मण आप देवानुप्रिय के पास मुण्डित हो कर अगारधर्म से अनगारधर्म में प्रवजित होने में समर्थ है ?' इत्यादि / [26 उ. (इसके उत्तर में-) शतक 12 उ. 1. सू. 31 में कथित शंख श्रमणोपासक के समान समग्र वर्णन, यावत्--सर्वदुःखों का अन्त करेगा, (यहाँ तक कहना चाहिए / ) 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--सोमिल ब्राह्मण के भविष्य में प्रवजित होने इत्यादि के सम्बन्ध में श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछे गए प्रश्न का प्रस्तुत सू. 26 में 12 वे शतक के अतिदेशपूर्वक समाधान प्रस्तुत किया गया है। // अठारहवां शतक : दसवाँ उद्देशक समाप्त / / // अठारहवां शतक सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org