________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 10] [743 हालिह-सुविकलाई, गंधप्रो सुब्भिगंध-दुखिभगंधाई, रसओ तित्त-कडु-कसाय-अंबिल-महुराई, फासतो कक्खड-मउय-गरुय-लहुय-सीय-उसिण-निद्ध-लुक्खाई अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमनपुट्ठाई जाव' अन्नमनघडत्ताए चिट्ठति ? हंता, अस्थि / [6 प्र. भगवन् ! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के नीचे वर्ण से—काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से--सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से--तिक्त, कटुक, कसैला, अम्ल (खट्टा) और मधुर; तथा स्पर्श से--कर्कश (कठोर), मृदु (कोमल), गुरु (भारी), लघु (हल्का), शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष--इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य (परस्पर) बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं ? [6 उ.] हाँ, गौतम ! (ये द्रव्य इसी प्रकार अन्योन्यबद्ध आदि) हैं। 10. एवं जाव अहेसत्तमाए / [10] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी तक जानना चाहिए। 11. अस्थि णं भंते ! सोहम्मस्स कप्पस्स अहे ? एवं चेव। [11 प्र.] भगवन् ! सौधर्म-कल्प के नीचे वर्ण से--इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न ? [11 उ.] गौतम ! (इसका उत्तर भी) उसी प्रकार (पूर्ववत्) है। 12. एवं जाव ईसिपब्भाराए पुढवीए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ / [12] इसी प्रकार यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है;' यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन–चतुःसूत्री द्वारा नरक, देवलोक एवं सिद्धशिला के नोचे के द्रव्यों का विश्लेषण-- सात नरकभूमियों, बारह देवलोकों, नौ अवेयकों एवं पांच अनुत्तर विमानों तथा ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे स्थित, तथाकथित वर्णादियुक्त परस्परबद्ध आदि द्रव्यों का निरूपण सू. 6 से 12 तक में किया गया है। कठिन शब्दार्थ--अन्नमन्नबद्धाइं--परस्पर गाढ़ आश्लेष से बद्ध / अन्नमन्न-पढ़ाई--एक दूसरे से स्पृष्ट अर्थात्--चारों ओर से गाढ़ रूप से श्लिष्ट / अन्नमन्न-ओगाढाई-एक क्षेत्राश्रित रहे हुए / अन्नमन्नघडताए-परस्पर सामूहिक रूप से घटित = जुड़े हुए। 1. जाव पद सूचक पाठ- अन्नमन्नओगाढाई.अन्तमन्नसिहपडिबद्धाइं इत्यादि पाठ / 2. विवाहपग्णत्तिसुत्तं भा. 2 (मुलपाठ-टिप्पणयुक्त पृ. 828 3. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 758 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org